National

बड़े प्रोजेक्ट से बेहतर हैं छतों पर लगे सोलर पैनल

भारत जुलाई, 2021 तक रूफटॉप सोलर से सिर्फ 5.1 गीगावॉट ऊर्जा का ही उत्पादन कर रहा था. जो साल 2022 तक रूफटॉप सोलर से 40 गीगावॉट बिजली उत्पादन के लक्ष्य का सिर्फ 13% ही है. ऐसे में अब यह लक्ष्य पूरा करना संभव नहीं लग रहा है.

दुनिया 2022 की ओर तेजी से बढ़ रही है और इसी के साथ भारत का रूफटॉप सोलर यानी छतों पर लगे सोलर पैनल के जरिए 40 गीगावॉट बिजली उत्पादन का लक्ष्य असंभव नजर आने लगा है. भारत सरकार ने यह सपना 2015 में देखा था और यह 175 गीगावॉट के उस रिन्यूएबल एनर्जी उत्पादन कार्यक्रम का हिस्सा था, जिसे 2022 तक पूरा किया जाना था.

बाद में इस लक्ष्य को बदलकर साल 2030 तक 450 गीगावॉट ग्रीन एनर्जी उत्पादन कर दिया गया. अब तक भारत 100 गीगावॉट से ज्यादा की ग्रीन एनर्जी उत्पादन क्षमता हासिल कर चुका है, जिसका ज्यादातर हिस्सा (करीब 78 फीसदी) बड़े पवन और सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट से आ रहा है. लेकिन जुलाई, 2021 तक भारत रूफटॉप सोलर के जरिए सिर्फ 5.1 गीगावॉट ऊर्जा ही उत्पादित कर रहा था.

यह निर्धारित लक्ष्य का मात्र 13 फीसदी है. यानी बड़े सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट के मामले में तेजी से आगे बढ़ रहा भारत रूफटॉप सोलर के मामले में पिछड़ रहा है. वह भी ऐसा तब हो रहा है, जब बड़े सौर और पवन ऊर्जा के प्रोजेक्ट कई तरह के प्रतिरोध का सामना कर रहे हैं. इस प्रतिरोध की कई वजहें हैं.

भारत

बड़े प्रोजेक्ट से बेहतर हैं छतों पर लगे सोलर पैनल

भारत जुलाई, 2021 तक रूफटॉप सोलर से सिर्फ 5.1 गीगावॉट ऊर्जा का ही उत्पादन कर रहा था. जो साल 2022 तक रूफटॉप सोलर से 40 गीगावॉट बिजली उत्पादन के लक्ष्य का सिर्फ 13% ही है. ऐसे में अब यह लक्ष्य पूरा करना संभव नहीं लग रहा है.

दुनिया बर में रूफटॉप सोलर का चलन बढ़ रहा है

दुनिया 2022 की ओर तेजी से बढ़ रही है और इसी के साथ भारत का रूफटॉप सोलर यानी छतों पर लगे सोलर पैनल के जरिए 40 गीगावॉट बिजली उत्पादन का लक्ष्य असंभव नजर आने लगा है. भारत सरकार ने यह सपना 2015 में देखा था और यह 175 गीगावॉट के उस रिन्यूएबल एनर्जी उत्पादन कार्यक्रम का हिस्सा था, जिसे 2022 तक पूरा किया जाना था.

बाद में इस लक्ष्य को बदलकर साल 2030 तक 450 गीगावॉट ग्रीन एनर्जी उत्पादन कर दिया गया. अब तक भारत 100 गीगावॉट से ज्यादा की ग्रीन एनर्जी उत्पादन क्षमता हासिल कर चुका है, जिसका ज्यादातर हिस्सा (करीब 78 फीसदी) बड़े पवन और सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट से आ रहा है. लेकिन जुलाई, 2021 तक भारत रूफटॉप सोलर के जरिए सिर्फ 5.1 गीगावॉट ऊर्जा ही उत्पादित कर रहा था.

यह निर्धारित लक्ष्य का मात्र 13 फीसदी है. यानी बड़े सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट के मामले में तेजी से आगे बढ़ रहा भारत रूफटॉप सोलर के मामले में पिछड़ रहा है. वह भी ऐसा तब हो रहा है, जब बड़े सौर और पवन ऊर्जा के प्रोजेक्ट कई तरह के प्रतिरोध का सामना कर रहे हैं. इस प्रतिरोध की कई वजहें हैं.

पानी और पर्यावास का संकट

बड़े सोलर फार्म में पैनल को सुरक्षित रखने के लिए बहुत ज्यादा पानी की जरूरत होती है. भारत के कई इलाकों में पानी की भारी कमी है. जानकार कहते हैं, ऐसे इलाकों में लगे सोलर प्लांट चिंता का सबब हो सकते हैं. इसके अलावा ऐसे प्रोजेक्ट के लिए स्थानीयों का विस्थापन या किसी विशेष भू-भाग पर आर्थिक निर्भरता वाले समूहों पर पड़ने वाला प्रभाव भी चिंता बढ़ाता है.

इतना ही नहीं जमीन पर सोलर पैनल लगाने के लिए वहां के पेड़-पौधों या घास को हटाया जाता है, जिससे उस जगह का पर्यावास बदल जाता है. स्थानीय छोटे-बड़े जानवरों और पक्षियों को इससे नुकसान पहुंचता है. इस तरह के खतरे का एक बड़ा उदाहरण ग्रेट इंडियन बस्टर्ड नाम का पक्षी है, जिस पर राजस्थान में लगे रिन्यूएबल एनर्जी प्रोजेक्ट्स के चलते खतरा मंडरा रहा है.

वेस्टलैंड को खतरा

जानकार कहते हैं कि एक डर इन प्रोजेक्ट्स के लिए गलत भू-भाग के चयन का भी है, जैसे वेस्टलैंड. भारत में घास और झाड़ियों के कई पुराने मैदान इसके अंतर्गत हैं. जानकार बताते हैं कि भले ही ये बहुत सामान्य लगें लेकिन ये बहुत से जंगलों से भी पुराने हैं, और पर्यावरण के लिए बहुमूल्य हैं.
साल 2019 में आई एक रिपोर्ट में बताया गया कि इन इलाकों से 8400 वर्ग किमी भूभाग को साल 2008-09 से 2015-16 के बीच नॉन-वेस्टलैंड क्लास में डाल दिया गया है. वह भी पर्यावरणविदों के इस दावे के बावजूद कि यहां घास के मैदानों के अलावा भारत के अर्द्ध-शुष्क प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र का भी बहुत बड़ा हिस्सा बसता है.

वेस्टलैंड से अलग हुए इन भूभागों पर ग्रीन एनर्जी प्रोजेक्ट लगाए जा रहे हैं. हाल ही इन मैदानों पर स्टडी करने वाले एमडी मधुसूदन और अबी वानक वेस्टलैंड से जुड़े अपने एक रिसर्च पेपर में लिखते हैं, “भारत के बड़े स्तर पर रिन्यूएबल एनर्जी तकनीकी के मामले में अंतरराष्ट्रीय नेता बनने की भूमिका ने हाल के सालों में खुले प्राकृतिक पर्यावास को विंडबनापूर्ण तरीके से एक बड़े खतरे में डाला है.”

रूफटॉप सोलर सही विकल्प

ऐसे हालात में कई पर्यावरण कार्यकर्ता सुझाते हैं कि भारत को बड़े सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट के बजाए रूफटॉप सोलर पर जोर देना चाहिए. शुरुआत में रूफटॉप सोलर में तेज बढ़ोतरी देखी भी गई थी. साल 2019 में आई इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकॉनमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस की एक रिपोर्ट के मुताबिक रूफटॉप सोलर भारत में सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ रहा ग्रीन एनर्जी सोर्स था.

भारत में यह 2012 से 2019 के बीच सालाना 116 फीसदी की दर से बढ़ा. लेकिन फिर यह सुस्त पड़ गया. बड़े स्तर पर इसके लिए तकनीक उपलब्ध कराने वाली ज्यादातर कंपनियों का मत है कि भले ही रूफटॉप सोलर फिलहाल शुरुआती दौर में है, लेकिन इसमें बड़े बदलावों की संभावना है. तेजी से इनोवेशन के जरिए सोलर पैनल को और प्रभावी बनाया जा सकता है. जिससे लोग इसे तेजी से अपनाएं.s

Show More

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button