छुपी हुई टीबी से बेखबर लाखों लोग! एम्स भोपाल की रिसर्च में सामने आई हकीकत!

भोपाल: अनजाने में टीबी से जूझ रहे लोग, एम्स भोपाल की रिसर्च में हुआ खुलासा
भोपाल के एम्स में हुई एक रिसर्च में चौंकाने वाला सच सामने आया है – दो फीसदी से ज्यादा लोग टीबी जैसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त हो सकते हैं, लेकिन उन्हें इसका पता ही नहीं होता। इस छुपी हुई टीबी को समझने के लिए शोधकर्ताओं ने डेड बॉडीज पर अध्ययन किया।
देश में पहली बार शवों पर टीबी का शोध
एम्स भोपाल के फॉरेंसिक मेडिसिन और टॉक्सिकोलॉजी विभाग ने यह अध्ययन किया, जिसमें खुदकुशी, सड़क हादसे और अन्य मेडिको-लीगल मामलों में पोस्टमार्टम के लिए आईं 743 डेड बॉडीज को शामिल किया गया। इनमें से 164 शवों के फेफड़ों की झिल्ली (प्लूरा) चिपकी हुई थी, जो पुरानी टीबी का संकेत है।
परिवार की सहमति से हुआ परीक्षण
मृतकों के परिजनों की सहमति के बाद, उनके सैंपल को माइक्रोबायोलॉजी लैब में कल्चर और पीसीआर टेस्ट के लिए भेजा गया। नतीजों में 11 शवों में टीबी की पुष्टि हुई, जबकि 4 अन्य में टीबी जैसा बैक्टीरिया (नॉन ट्यूबरकुलस माइकोबैक्टीरियम) पाया गया, लेकिन वे इससे प्रभावित नहीं थे।
टीबी के लक्षण तक नहीं थे
इस रिसर्च से यह साफ हो गया कि दो फीसदी से ज्यादा लोग टीबी से पीड़ित हो सकते हैं, लेकिन उन्हें इसका अहसास तक नहीं होता। जांच में सामने आया कि संक्रमित 11 लोगों में से 6 को कोई लक्षण नहीं थे, जबकि 5 को हल्की खांसी थी। इनमें 9 पुरुष और 2 महिलाएं थीं, जिनकी उम्र 22 से 65 साल के बीच थी।
टीबी से पीड़ित एक व्यक्ति 10 से 15 लोगों को संक्रमित कर सकता है
गांधी मेडिकल कॉलेज, भोपाल के छाती और श्वसन रोग विशेषज्ञ डॉ. पराग शर्मा का कहना है कि एक टीबी मरीज सालभर में करीब 10 से 15 लोगों को संक्रमित कर सकता है। समस्या यह है कि लोग समय पर जांच के लिए आगे नहीं आते, जिससे बीमारी नियंत्रण में मुश्किल होती है।
टीबी मुक्त भारत के लिए सरकार का लक्ष्य
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, 2015 में प्रति एक लाख की आबादी में 237 लोग टीबी से ग्रसित थे, जो 2023 में घटकर 195 रह गए। इसी तरह, टीबी से होने वाली मौतें भी 2015 में प्रति लाख 28 थीं, जो 2023 में घटकर 22 हो गईं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2025 तक भारत को टीबी मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा है, और यह शोध इस दिशा में जागरूकता बढ़ाने में मददगार साबित हो सकता है।
पहले भी हुआ था ऐसा अध्ययन
इस तरह के चिपके फेफड़ों पर अमेरिका में 1954 में एक शोध हुआ था। भारत में यह अपनी तरह का पहला रिसर्च है, जिसे एम्स भोपाल की डॉ. जयंती यादव, डॉ. शशांक पुरवार, डॉ. उज्जवल खुराना और डॉ. शुभम रिछारिया ने किया। इस अध्ययन को फरवरी 2025 में फॉरेंसिक साइंस इंटरनेशनल जर्नल में प्रकाशित किया गया है।
यह रिसर्च बताती है कि टीबी के मामले हमारी सोच से कहीं ज्यादा हो सकते हैं, इसलिए जरूरी है कि लोग समय-समय पर अपनी जांच करवाएं और इस बीमारी के लक्षणों को हल्के में न लें।