तकनीक में अव्वल, पर डेटा सेंटर के लिए पीछे – बेंगलुरु की हकीकत
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बेंगलुरु : यह सच है कि बेंगलुरु टेक कंपनियों को आकर्षित करने के लिए जाना जाता है, लेकिन बड़े डेटा सेंटरों के लिए यह उतना उपयुक्त स्थान नहीं बन पा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि कर्नाटक सरकार की ओर से दिए जा रहे प्रोत्साहनों के बावजूद कुछ ऐसी चुनौतियाँ हैं, जिन्हें हल करना मुश्किल लग रहा है। डेटा सेंटर असल में एक ऐसा भौतिक स्थान होता है, जहाँ कंपनियों का डेटा स्टोर, प्रोसेस और डिस्ट्रीब्यूट किया जाता है। इसमें कई कंप्यूटिंग डिवाइसेज़ और आईटी से जुड़ा हार्डवेयर मौजूद होता है। रियल एस्टेट कंसल्टेंसी कंपनी Colliers के एक प्रतिनिधि ने बताया, “डेटा सेंटर विकसित करने से पहले डेवलपर्स कई चीज़ों को ध्यान में रखते हैं, जैसे ज़मीन और श्रम की लागत, बिना किसी रुकावट के बिजली की उपलब्धता और उसकी टैरिफ दरें, सरकारी प्रोत्साहन और अन्य सपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर, जैसे पावर केबल्स, लैंडिंग स्टेशन और फाइबर कनेक्टिविटी।” बेंगलुरु को लेकर सबसे बड़ी समस्या इसकी ऊँची ज़मीन की कीमतें और महंगी बिजली दरें हैं, जिससे यह अन्य शहरों की तुलना में पिछड़ जाता है। इसके अलावा, यहाँ सिर्फ फाइबर ऑप्टिक केबल्स पर निर्भरता के कारण लेटेंसी (डेटा ट्रांसफर की गति में देरी) की समस्या भी बनी रहती है। JLL की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में डेटा सेंटर उद्योग की क्षमता 2026 के अंत तक 1.5 गीगावॉट (GW) तक पहुँचने की उम्मीद है, जिसमें मुंबई और चेन्नई 81% नई क्षमता वृद्धि में योगदान देंगे।
तुलना करें तो, बेंगलुरु में केवल 81 मेगावाट (MW) की कोलोकेशन क्षमता और 13 डेटा सेंटर संपत्तियाँ हैं, जबकि मुंबई में 477 मेगावाट की क्षमता और 32 संपत्तियाँ हैं, जिनमें 9 केबल लैंडिंग शामिल हैं। कनेक्टिविटी की समस्या भारत में मुंबई और चेन्नई को प्रमुख डेटा सेंटर हब माना जाता है, क्योंकि उनकी भौगोलिक स्थिति रणनीतिक रूप से बेहतर है। ये दोनों शहर समुद्री केबल्स के ज़रिए अन्य देशों से बेहतर कनेक्टिविटी प्रदान करते हैं, जिससे डेटा ट्रांसफर तेज़ और सुचारु रूप से होता है। TeamLease Services के मुख्य परिचालन अधिकारी सुब्बुरथिनम पी. ने बताया कि भारत के डेटा सेंटर मार्केट का लगभग दो-तिहाई हिस्सा उन्हीं शहरों में केंद्रित है, जहाँ समुद्री केबल्स की कनेक्टिविटी है। कोलकाता भी अब समुद्र के नीचे केबल्स से जुड़ने की योजना बना रहा है, जिससे भविष्य में यह एक प्रमुख डेटा सेंटर हब बन सकता है। दूसरी ओर, बेंगलुरु अपनी भू-संरचना के कारण इस सुविधा से वंचित रहता है, जिससे यहाँ लेटेंसी से जुड़ी समस्याएँ बनी रहती हैं। हालाँकि, यह स्थिति हर डेटा सेंटर के लिए एक जैसी नहीं होती। कुछ ऑपरेशंस धीमी गति से भी काम चला सकते हैं, जैसे इन-हाउस और कैप्टिव डेटा सेंटर, जो बेंगलुरु में पहले से मौजूद हैं।
विकास में देरी विशेषज्ञों के अनुसार, डेटा सेंटर के क्षेत्र में बेंगलुरु दूसरे शहरों के मुकाबले देर से उतरा है, जिससे इसकी परिपक्वता (maturity) कम है। उदाहरण के लिए, हैदराबाद में सरकार डेटा सेंटरों को सस्ती ज़मीन और बिजली जैसी सुविधाएँ प्रदान कर रही है, जिससे वहाँ तेज़ी से विस्तार हो रहा है। डेटा सेंटर का विस्तार ज़्यादातर हॉरिजॉन्टल (समतल ज़मीन पर) होता है, वर्टिकल (ऊँचाई में) नहीं। ऐसे में, बेंगलुरु में ज़मीन महँगी होने के कारण विस्तार करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। हालाँकि, ऐसा भी नहीं है कि बेंगलुरु में डेटा सेंटर बिल्कुल स्थापित नहीं हो सकते। यहाँ कई छोटे डेटा सेंटर पहले से मौजूद हैं, लेकिन बड़े स्तर के (hyperscaler) डेटा सेंटरों के लिए मुश्किलें बनी हुई हैं। शहर के उत्तरी इलाकों में कुछ ज़मीनें उपलब्ध हैं, जो इस क्षेत्र में निवेश के लिए प्राथमिकता पा सकती हैं। बढ़ती क्लाउड कंप्यूटिंग की मांग और उपयोगकर्ताओं की ओर से तेज़ डेटा प्रोसेसिंग व कम लेटेंसी की जरूरत को देखते हुए यह साफ है कि आने वाले समय में बड़े और छोटे, दोनों तरह के डेटा सेंटर देशभर में फैलेंगे। इसका एक उदाहरण यह है कि बीते दस सालों में फाइबर पाथ मॉनिटरिंग और पेट्रोलिंग टीमों के साथ-साथ इंजीनियरों की संख्या दोगुनी हो चुकी है, जो इस क्षेत्र में बढ़ते निवेश को दर्शाता है।