चीनी को ‘शर्करा’ कहकर लोगों को गुमराह कर रहा डाबर? FSSAI से कार्रवाई की मांग

घरेलू एफएमसीजी कंपनी डाबर इंडिया एक बार फिर अपने पॉपुलर आयुर्वेदिक हेल्थ सप्लिमेंट ‘डाबर च्यवनप्राश’ को लेकर उपभोक्ताओं को गुमराह करने के आरोपों में घिर गई है। फूड एक्टिविस्ट नलिनी उनागर ने कंपनी पर लेबलिंग के ज़रिए उपभोक्ताओं को धोखा देने का आरोप लगाया है। X (पहले ट्विटर) पर एक पोस्ट में उनागर ने बताया कि इस प्रोडक्ट में हर सर्विंग में 59.5 ग्राम चीनी होती है, जिसे “शर्करा” नाम से दिखाया गया है। “शर्करा” एक संस्कृत शब्द है जिसे आमतौर पर कोई आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी समझ सकता है, जबकि असल में ये सीधी-सी चीनी है। डाबर च्यवनप्राश के लेबल की एक तस्वीर शेयर करते हुए उनागर ने बताया कि यह फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) के नियमों का उल्लंघन हो सकता है। FSSAI के मुताबिक, किसी भी खाने के प्रोडक्ट में इंग्रीडिएंट्स को वजन या मात्रा के हिसाब से घटते क्रम में दिखाना ज़रूरी है। यानी जिस चीज़ की मात्रा सबसे ज़्यादा है, उसका नाम सबसे पहले आना चाहिए। डाबर च्यवनप्राश के मामले में, चीनी (यानी “शर्करा”) की मात्रा 59.5 ग्राम है, जो सबसे ज़्यादा है, तो उसे सबसे पहले दिखाया जाना चाहिए था। लेकिन यहां इसे लिस्ट के बीच में रखा गया है, जिससे लोगों को इसके ज़्यादा होने का अंदाज़ा नहीं होता, खासकर जब वे “शर्करा” को चीनी न समझें।
उनागर ने लिखा – “डाबर च्यवनप्राश लोगों को बेवकूफ बना रहा है।” वैसे यह पहली बार नहीं है जब डाबर के इस प्रोडक्ट को लेकर सवाल उठे हैं। 2021 में ऐडवर्टाइजिंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया (ASCI) ने कंपनी से वह विज्ञापन हटाने को कहा था जिसमें यह दावा किया गया था कि डाबर च्यवनप्राश कोविड-19 से सुरक्षा देता है, क्योंकि इस दावे के समर्थन में कोई पुख्ता साइंटिफिक सबूत नहीं था। यह प्रोडक्ट च्यवनप्राश कैटेगरी में 60% मार्केट शेयर रखता है और इसे लंबे वक्त से इम्यूनिटी बढ़ाने वाला बताया जाता रहा है। इसमें आंवला, गिलोय, पिप्पली जैसी 41 से ज़्यादा आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां होती हैं। नवंबर 2024 में भी ASCI ने एक प्रिंट विज्ञापन की जांच शुरू की थी, जिसमें डाबर च्यवनप्राश को एक AQI इंडेक्स (एयर क्वालिटी इंडेक्स) के नीचे छापा गया था – जिससे यह संदेश गया कि यह प्रोडक्ट प्रदूषण से भी सुरक्षा देता है।
भारत में च्यवनप्राश जैसे आयुर्वेदिक प्रोडक्ट ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 के तहत रेगुलेट होते हैं, और इन्हें सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइज़ेशन (CDSCO) देखता है। हालांकि पुणे म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन (PMC) की एक सर्वे रिपोर्ट पहले ही बता चुकी है कि भारत में कई आयुर्वेदिक दवाओं के लेबल तय नियमों के मुताबिक नहीं होते। जैसे कि सावधानियों को अलग-अलग भाषाओं में नहीं लिखा जाता या इंग्रीडिएंट्स की जानकारी साफ तौर पर नहीं दी जाती। डाबर जैसे ब्रांड्स के लेबल पर संस्कृत शब्द जैसे “शर्करा” का इस्तेमाल उपभोक्ताओं को भ्रमित कर सकता है, खासकर उन लोगों को जो संस्कृत से परिचित नहीं हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान डाबर च्यवनप्राश की लोकप्रियता काफी बढ़ी थी। 2020 में डाबर इंडिया लिमिटेड के सीईओ मोहित मल्होत्रा ने कहा था कि उस साल च्यवनप्राश की मांग में 400% का उछाल आया। उस समय कंपनी के तिमाही प्रॉफिट में 24.19% की गिरावट दर्ज की गई थी, लेकिन इसके बावजूद डाबर ने बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए उत्पादन क्षमता में भारी निवेश किया। हालांकि अब जो विवाद सामने आया है, वह इस हेल्थ प्रोडक्ट की भरोसेमंद छवि पर असर डाल सकता है।