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भारत-चीन रिश्तों पर बड़ी चर्चा: सीमा पर शांति क्यों है सबसे अहम ‘बीमा पॉलिसी’?

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 भारत-चीन की दोस्ती का नया अध्याय: सीमा पर शांति ही है असली ‘सिक्योरिटी’!- हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई मुलाक़ात ने दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। इस अहम बैठक में दोनों देशों के नेताओं ने एक बात पर ज़ोर दिया कि सीमा पर शांति और स्थिरता बनाए रखना ही दोनों देशों के आपसी रिश्तों के लिए सबसे बड़ी ‘सुरक्षा’ है। विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस मुलाक़ात की खास बातों को साझा करते हुए यह जानकारी दी।

 सीमा पर अमन ही रिश्तों की चाबी-पिछले चार सालों से लद्दाख सीमा पर चले आ रहे तनाव ने भारत और चीन के रिश्तों में थोड़ी कड़वाहट ला दी थी। हालाँकि, पिछले साल सैनिकों की वापसी और कुछ विवादित इलाकों से पीछे हटने के बाद हालात में कुछ सुधार आया है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस मुलाक़ात में साफ़ कर दिया कि जब तक सीमा पर शांति और आपसी विश्वास नहीं होगा, तब तक दोनों देशों के रिश्ते आगे नहीं बढ़ सकते। विदेश सचिव मिस्री ने बताया कि भारत का हमेशा से यही मानना रहा है कि सीमा पर जो भी होता है, उसका सीधा असर दोनों देशों के रिश्तों पर पड़ता है। इसीलिए पीएम मोदी ने खुद राष्ट्रपति शी के सामने यह बात रखी कि सीमा पर शांति बनाए रखना दोनों देशों के लिए कितना ज़रूरी है। दोनों पक्षों ने इस बात पर सहमति जताई कि मौजूदा व्यवस्थाओं के ज़रिए शांति बनाए रखी जाएगी और ऐसी किसी भी घटना से बचा जाएगा जिससे रिश्ते खराब हों।

सीमा विवाद सुलझाने का रास्ता और विश्वास बहाली-इस मुलाक़ात में दोनों नेताओं ने इस बात पर भी चर्चा की कि सीमा विवाद को आपसी समझ, निष्पक्षता और दूरदर्शिता के साथ हल किया जाना चाहिए। इसका सीधा मतलब यह है कि इस मामले में कोई जल्दबाजी नहीं की जाएगी और न ही किसी पर कोई दबाव डाला जाएगा। गलवान घाटी में हुई झड़प ने पिछले कुछ सालों में रिश्तों को गहरा झटका दिया था। लेकिन अब दोनों देश इस बात पर सहमत हैं कि धीरे-धीरे विश्वास को फिर से बनाना ही सबसे अच्छा तरीका है। प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी ने सैनिकों की सफल वापसी और अब तक बनी शांति का ज़िक्र भी किया। इससे यह साफ़ हो जाता है कि दोनों पक्ष भविष्य में विवादों से बचते हुए सहयोग की दिशा में आगे बढ़ना चाहते हैं।

 आतंकवाद पर भी हुई खुलकर बात-इस मुलाक़ात में सिर्फ सीमा का मुद्दा ही नहीं, बल्कि आतंकवाद का मसला भी काफी अहम रहा। प्रधानमंत्री मोदी ने सीमा पार से होने वाले आतंकवाद को दोनों देशों के लिए एक गंभीर खतरा बताया। उन्होंने यह भी कहा कि भारत और चीन को इस चुनौती का सामना करने के लिए एक-दूसरे का सहयोग करना चाहिए। विदेश सचिव मिस्री ने बताया कि चीन ने इस मुद्दे पर भारत का समर्थन किया है। शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक के दौरान भी चीन ने भारत की बात को समझते हुए सहयोग दिखाया। यह इस बात का संकेत है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को लेकर दोनों देशों के विचार काफी हद तक मिलते हैं और भविष्य में इस पर मिलकर काम करने की काफी संभावना है।

 रिश्तों को मज़बूत करने के लिए चीन के चार सुझाव-राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इस मुलाक़ात के दौरान भारत-चीन के रिश्तों को और बेहतर बनाने के लिए चार महत्वपूर्ण सुझाव दिए। इनमें सबसे खास थे – रणनीतिक बातचीत और आपसी विश्वास को और गहरा करना, आपसी सहयोग को बढ़ाना ताकि दोनों देशों को फायदा हो, एक-दूसरे की चिंताओं को समझना और विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मिलकर काम करना। प्रधानमंत्री मोदी ने इन सभी सुझावों पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी। इसका मतलब है कि भारत और चीन अब अपने मतभेदों को विवाद में बदलने से बचना चाहते हैं। दोनों देशों ने यह माना है कि रिश्तों में जो भी अंतर हैं, उन्हें बातचीत के ज़रिए सुलझाना चाहिए, न कि उन्हें टकराव का रूप देना चाहिए।

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