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पहाड़ी क्षेत्रों में ग्लेशियरों के पिघलने से तबाही की आशंका, लाखों लोगों पर मंडराया खतरा

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ग्लेशियर : यहां दुनिया भर की पहाड़ी श्रृंखलाओं में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, क्योंकि वैश्विक तापमान लगातार बढ़ रहा है। यूरोप की आल्प्स और पाइरेनीज पहाड़ियों में 2000 से 2023 के बीच 40% ग्लेशियर बर्फ खत्म हो गई है। ये बर्फीले क्षेत्र सदियों से पहाड़ों के नीचे बसे लोगों को मीठा पानी उपलब्ध कराते रहे हैं—आज भी करीब 2 अरब लोग ग्लेशियरों पर निर्भर हैं। लेकिन जैसे-जैसे ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, वैसे-वैसे यह खतरनाक आपदाओं को भी जन्म दे रहे हैं। पिघलती बर्फ से निकला पानी उन निचले क्षेत्रों में इकट्ठा होता है, जहां कभी ग्लेशियर हुआ करते थे, और वहां बड़े-बड़े झील बन जाते हैं। इनमें से कई झीलें अस्थिर बर्फीले बांधों या सदियों से जमे चट्टानी मलबे (मोरेन) के सहारे टिकी होती हैं। अगर इन झीलों में पानी जरूरत से ज्यादा भर जाए या भूस्खलन हो जाए, तो यह अस्थिर बांध टूट सकते हैं, जिससे अचानक बाढ़ आ सकती है। यह पानी और मलबे का सैलाब पहाड़ी घाटियों में तेजी से नीचे की ओर बहता है और जो भी उसके रास्ते में आता है, उसे तबाह कर देता है। यही वजह है कि संयुक्त राष्ट्र ने 2025 को अंतरराष्ट्रीय ग्लेशियर संरक्षण वर्ष और 21 मार्च को पहला विश्व ग्लेशियर दिवस घोषित किया है। बर्फीले बांधों का टूटना और भूस्खलन ज्यादातर ग्लेशियर झीलें 1860 के दशक से गर्मी बढ़ने के कारण बनने लगी थीं, लेकिन 1960 के बाद से इनकी संख्या और आकार तेजी से बढ़ा है।

हिमालय, एंडीज, आल्प्स, रॉकी माउंटेन्स, आइसलैंड और अलास्का में रहने वाले लोग किसी न किसी रूप में ग्लेशियर झीलों के फटने से आई बाढ़ का सामना कर चुके हैं। अक्टूबर 2023 में हिमालय में एक ग्लेशियर झील फटने से 30 से अधिक पुल बह गए और 200 फीट ऊंचा (60 मीटर) जलविद्युत संयंत्र नष्ट हो गया। इस आपदा की कोई ठोस चेतावनी नहीं मिली थी, और जब तक हालात काबू में आए, तब तक 50 से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके थे। अलास्का के जूनो शहर में पिछले कुछ वर्षों में कई बार ऐसी बाढ़ आई है, जहां बर्फ के बांध से रोका गया पानी अचानक टूटकर बह निकला। 2024 में भी एक ऐसी ही बाढ़ आई, जो लगातार पिघल रहे ग्लेशियर की वजह से बनी थी। बर्फीले इलाकों में हिमस्खलन (Avalanche), चट्टानों का गिरना (Rockfalls) और ढलानों का खिसकना (Slope Failure) भी ऐसी बाढ़ का कारण बन सकते हैं। यह समस्या और गंभीर हो रही है, क्योंकि पहाड़ों में जमी स्थायी बर्फ (Permafrost) भी अब पिघलने लगी है, जिससे पहाड़ों की स्थिरता खत्म हो रही है।

जब चट्टानें या बर्फ के बड़े टुकड़े झील में गिरते हैं, तो यह विशाल लहरें पैदा कर सकते हैं, जो झील के बांध को तोड़कर पानी और मलबे की तबाही ला सकते हैं। विनाशकारी बाढ़ का खतरा ऐसी घटनाओं से होने वाली तबाही भयावह हो सकती है। 1941 में पेरू के एंडीज पहाड़ों में लगुना पल्काकोचा झील में एक हिमस्खलन गिरा, जिससे बनी लहरों ने झील के प्राकृतिक बांध को तोड़ दिया। इससे आई बाढ़ ने नीचे बसे हुआराज शहर का एक-तिहाई हिस्सा तबाह कर दिया और 1,800 से 5,000 लोगों की मौत हो गई। आज यह खतरा और भी बढ़ गया है। 1941 की तुलना में अब यह झील 14 गुना बड़ी हो चुकी है, और हुआराज की आबादी 1.2 लाख से अधिक हो गई है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि अगर आज यहां से बाढ़ आती है, तो कम से कम 35,000 लोगों की जान खतरे में पड़ सकती है।

सरकारें इस बढ़ते खतरे से निपटने के लिए जल स्तर कम करने के उपाय और बाढ़ से बचाव के लिए मजबूत दीवारें बना रही हैं। कुछ जगहों पर जल निकासी चैनल और गेबियन (पत्थरों से भरी जालीदार दीवारें) भी बनाई गई हैं, ताकि गांवों और खेतों को बचाया जा सके। जहां इन जोखिमों को पूरी तरह खत्म करना संभव नहीं, वहां नए निर्माण पर रोक और लोगों को खतरनाक क्षेत्रों से दूर बसाने की कोशिश की जा रही है। लेकिन इन सब प्रयासों के बावजूद, खतरा बना हुआ है। ग्लेशियरों के भीतर भी बढ़ रहा है खतरा ग्लेशियर झीलों की बाढ़ सबसे ज्यादा ध्यान खींचती है, लेकिन यह एकमात्र समस्या नहीं है। जैसे-जैसे वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन और ग्लेशियरों के प्रभाव को समझ रहे हैं, वैसे-वैसे और भी खतरनाक घटनाओं का पता चल रहा है। ग्लेशियरों के भीतर बर्फीली गुफाओं में पानी जमा हो सकता है, और जब यह तेजी से बहने लगे तो झील के बाहर अचानक बाढ़ आ सकती है। इसके अलावा, पहाड़ों में स्थायी रूप से जमी हुई बर्फ (permafrost) का पिघलना भी समस्या को बढ़ा रहा है। जब यह ठोस परत पिघलती है, तो चट्टानें कमजोर हो जाती हैं और खिसकने लगती हैं, जिससे हिमस्खलन और बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है।

2017 में नेपाल की साल्दिम चोटी (20,935 फीट) का एक बड़ा हिस्सा टूटकर नीचे लांगमाले ग्लेशियर पर गिरा। इस टकराव से इतनी गर्मी बनी कि बर्फ तुरंत पिघल गई, जिससे एक बड़े पैमाने पर चट्टानों और मलबे का सैलाब बह निकला और नीचे बनी झील फट गई। भविष्य के लिए चेतावनी ग्लेशियरों का सिकुड़ना और बढ़ती आपदाएं जलवायु परिवर्तन का सीधा असर हैं। 2024 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, दुनिया में अब 1,10,000 से अधिक ग्लेशियर झीलें हैं, और करीब 1 करोड़ लोगों की जान इनसे आने वाली बाढ़ से खतरे में है। संयुक्त राष्ट्र ने 2025 से 2034 तक “क्रायोस्फेरिक विज्ञान में कार्रवाई का दशक” घोषित किया है, जिसमें वैज्ञानिक इन खतरों को समझने और उनसे निपटने के तरीकों पर काम करेंगे। निष्कर्ष  ग्लेशियरों का पिघलना सिर्फ पानी की आपूर्ति का नुकसान नहीं, बल्कि तेजी से बढ़ता एक विनाशकारी खतरा है। बाढ़, भूस्खलन और हिमस्खलन जैसी घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं, और पहाड़ों में रहने वाले लोगों के लिए यह स्थिति और भी गंभीर होती जा रही है। संयुक्त राष्ट्र और वैज्ञानिक समुदाय इस खतरे को कम करने के लिए काम कर रहे हैं, लेकिन अब जरूरी है कि सरकारें और स्थानीय समुदाय मिलकर सुरक्षा उपायों को मजबूत करें, ताकि आने वाले वर्षों में बड़ी तबाही से बचा जा सके।

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