MP में धान घोटाला उजागर: 60 हजार क्विंटल की हेराफेरी, 150 करोड़ रुपये का घोटाला

मध्य प्रदेश में धान घोटाला: 150 करोड़ पार, कई जिलों में गड़बड़ी, सरकार ने दिए जांच के आदेश मध्य प्रदेश में धान खरीदी और मिलिंग से जुड़ा घोटाला अब 150 करोड़ रुपये से अधिक का हो चुका है। आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (EOW) की जांच में खुलासा हुआ है कि यह कोई नया घोटाला नहीं, बल्कि बरसों से चल रहा खेल है। अब तक 60 हजार क्विंटल धान की गड़बड़ी सामने आ चुकी है।
कैसे हुआ यह घोटाला?
धान खरीदी समितियों और अधिकारियों की मिलीभगत से कागजों पर खरीदी और भंडारण दिखाया जाता था, लेकिन असल में धान गायब रहता था। यहां तक कि धान के परिवहन का पैसा भी बंदरबांट कर लिया जाता था। इस मामले में अब तक 38 समितियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जा चुकी है, और 135 लोगों को आरोपी बनाया गया है। यह घोटाला बालाघाट, सतना, सीधी, मैहर, डिंडोरी, सागर, पन्ना और सिवनी जिलों में पकड़ में आया है। सिवनी जिले में शकुंतला देवी राइस मिल के खिलाफ भी आपराधिक मामला दर्ज हुआ है।
फर्जी बोरियों में मिला धान
EOW की जांच में यह भी सामने आया कि धान की मिलिंग में कई राज्यों की बोरियां इस्तेमाल की गईं। हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र, बिहार, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा की बोरियों में करीब 2297 क्विंटल चावल मिला, जिससे यह साफ होता है कि स्थानीय धान की जगह कहीं और से लाया गया चावल यहां खपाया गया।
पहले भी हो चुका है चावल घोटाला
चार साल पहले भी एक बड़ा चावल घोटाला सामने आया था, जिसमें 22 जिलों के सरकारी गोदामों में 73,540 टन घटिया (पोल्ट्री ग्रेड) चावल मिला था। करीब 300 करोड़ रुपये के इस घोटाले में कोई भी मिल संचालक जिम्मेदार नहीं ठहराया गया था। यह चावल कोरोना काल में गरीबों और प्रवासी मजदूरों को बांटने के लिए रखा गया था, लेकिन इसमें भारी अनियमितताएं पाई गईं। इस गड़बड़ी पर प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) ने भी नाराजगी जताई थी।
सरकार ने बनाई जांच कमेटी
इस घोटाले के खुलासे के बाद प्रदेश सरकार ने कलेक्टरों को निर्देश दिए हैं कि वे समर्थन मूल्य पर धान खरीदी में हुई गड़बड़ियों की जांच करें। खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री गोविंद सिंह राजपूत ने इस मामले में 7 दिन के भीतर विस्तृत रिपोर्ट सौंपने के निर्देश दिए हैं।
जांच कमेटी में कौन-कौन होगा?
- जांच टीम का नेतृत्व कलेक्टर द्वारा नामांकित अपर, संयुक्त या डिप्टी कलेक्टर करेंगे।
- जिला आपूर्ति नियंत्रक या खाद्य अधिकारी संयोजक होंगे।
- सहकारिता विभाग के उप/सहायक आयुक्त, जिला सहकारी बैंक के महाप्रबंधक, मध्य प्रदेश स्टेट सिविल सप्लाई कॉरपोरेशन और वेयरहाउसिंग लॉजिस्टिक्स कॉरपोरेशन के अधिकारी भी इसमें शामिल होंगे।
क्या-क्या जांच होगी?
- खरीदे गए धान की मात्रा और उसके गोदाम तक पहुंचने की स्थिति।
- मिलर्स को किए गए भुगतान और धान की सप्लाई का विवरण।
- धान की कमी की वजह और उसमें हुई वित्तीय अनियमितताएं।
- धान परिवहन में इस्तेमाल किए गए वाहनों की ट्रैकिंग और उनके टोल नाकों से मिले डाटा की जांच।
ध्यान देने वाली बातें
- जिन गोदामों में धान कम मात्रा में मिला, वहां की समितियों से शॉर्टेज की वसूली की जाएगी।
- किसी भी स्थिति में बाजार या अन्य स्रोतों से धान की भरपाई नहीं की जाएगी।
- जांच पूरी होने तक सिविल सप्लाई कॉरपोरेशन नए डिलीवरी ऑर्डर जारी नहीं करेगा।
यह घोटाला यह सवाल उठाता है कि आखिर कब तक किसानों के नाम पर इस तरह के भ्रष्टाचार होते रहेंगे? अब देखना होगा कि सरकार इस मामले में कितनी सख्त कार्रवाई करती है और दोषियों को क्या सजा मिलती है।