2024: चुनावों का रंग, सत्ता का खेल!
2024 का साल: चुनावों का रंग, राजनीति का तूफ़ान! 2024 का साल देश के लिए खास रहा, क्योंकि इस साल हुए आम चुनावों ने एक बार फिर दुनिया को सबसे बड़े लोकतंत्र की खूबसूरती दिखाई। चुनाव प्रचार हो या वोट डालने वाले लोगों की संख्या, या फिर राजनीतिक बहस, सबने दुनिया को एक बार फिर हैरान कर दिया। साल की शुरुआत से ही चुनावों की तैयारी जोरों पर थी। लगभग 6 महीने तक पूरा देश चुनाव के त्योहार को मनाता रहा। राजनीतिक चालबाजियों के बीच जिस तरह से लोगों ने खुले दिल से चुनाव प्रक्रिया में हिस्सा लिया, वो दुनिया भर के लोकतंत्रों के लिए एक मिसाल बन गया। खास तौर पर कश्मीर के लोगों ने जिस तरह से चुनाव प्रक्रिया को अपनाया, वो हर भारतीय के लिए गर्व की बात है।
राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ साल की शुरुआत में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ शुरू की, जो कि चुनाव प्रचार की अनौपचारिक शुरुआत थी। इस यात्रा में उन्होंने संविधान, जातिगत जनगणना, बेरोजगारी जैसे मुद्दों को अपने तरीके से उठाने की कोशिश की। यह यात्रा पूर्वोत्तर से शुरू होकर मुंबई में खत्म हुई और राहुल गांधी की पहली ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की तरह ही इस यात्रा को भी मीडिया में खूब जगह मिली। विपक्षी दलों का ‘इंडिया ब्लॉक’ विपक्षी दलों का ‘इंडिया ब्लॉक’ पहले से ही बन चुका था, लेकिन मार्च में पटना में अपनी पहली रैली करके इसने लोकसभा चुनावों के लिए अपने प्रचार की औपचारिक शुरुआत की। इस रैली में विपक्षी दलों ने सामाजिक न्याय, संघवाद और संविधान जैसे मुद्दों पर सत्तारूढ़ भाजपा को चुनौती देने की कोशिश की। भाजपा और उसके नेतृत्व पर हमले का कोई तीर नहीं छोड़ा गया।
हालांकि, ‘इंडिया ब्लॉक’ के नेता (नीतीश कुमार ने पाला बदलकर भाजपा का दामन थाम लिया था) के बीच रास्ते में ही गाड़ी की ड्राइविंग सीट बदलने से विपक्ष का जोश शुरू से ही कमज़ोर दिख रहा था।मोदी ने भाजपा और एनडीए के प्रचार की कमान संभाली सत्तारूढ़ भाजपा ने विकास और राष्ट्रवाद के मुद्दों पर विपक्ष की चुनौती का मुकाबला करने की कोशिश की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे हमेशा की तरह अपने प्रचार के केंद्र में रहे और पार्टी और उसके एनडीए सहयोगियों ने उनकी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को चुनाव प्रचार का हिस्सा बनाया। भाजपा ने ग्रामीण और शहरी दोनों ही मतदाताओं पर पूरा ध्यान केंद्रित किया। ध्रुवीकरण के मुद्दों को हवा देने की कोशिशें हर चुनाव की तरह इस चुनाव में भी कुछ ध्रुवीकरण के मुद्दे हावी रहे। उदाहरण के लिए, राजनीतिक दलों ने अपने-अपने तरीके से समान नागरिक संहिता (यूसीसी) और जातिगत जनगणना को उठाया। जहां भाजपा यूसीसी के पक्ष में खड़ी थी, वहीं कांग्रेस और उसके ‘इंडिया ब्लॉक’ ने जातिगत जनगणना कराने के वादे को हवा दी।
2024 का साल: चुनावों का रंग, राजनीति का तूफ़ान! (Part 2) 2024 के चुनावों में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल खूब हुआ। सत्तारूढ़ एनडीए और विपक्षी ‘इंडिया ब्लॉक’ दोनों ने ही प्रचार के लिए टेक्नोलॉजी का भरपूर इस्तेमाल किया। खासकर भाजपा ने पहली बार वोट डालने वाले लोगों तक पहुँचने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और डेटा एनालिटिक्स का इस्तेमाल किया। इस बार कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने भी प्रचार के लिए सोशल मीडिया का खूब इस्तेमाल किया।
केजरीवाल की गिरफ़्तारी और जमानत चुनावों की शुरुआत से कुछ महीने पहले मार्च में जब तत्कालीन दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को शराब घोटाले में गिरफ़्तार किया गया, तो ‘इंडिया ब्लॉक’ ने इसे चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश की। उन्होंने दिल्ली में एक बड़ी ‘लोकतंत्र बचाओ रैली’ का आयोजन किया। उन्होंने भाजपा पर राजनीतिक बदले की कार्रवाई करने का आरोप लगाया। उन्होंने केंद्र सरकार, खासकर पीएम मोदी पर तानाशाही रवैया अपनाने का आरोप लगाया। बाद में जब सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल को प्रचार के लिए जमानत दे दी, तो विपक्ष और भी उत्साहित हो गया। लेकिन दिल्ली की सभी सात लोकसभा सीटें भाजपा के खाते में चली गईं। क्षेत्रीय नेताओं का जलवा: कौन चमका, कौन फीका पड़ा? इस चुनाव में पश्चिम बंगाल में टीएमसी की ममता बनर्जी, बिहार में नीतीश कुमार और यूपी में अखिलेश यादव एक बार फिर प्रमुख राजनीतिक शख्सियत के तौर पर उभरे। इन सभी नेताओं की वजह से उनकी पार्टियां और उनके गठबंधन अपने-अपने राज्यों में अच्छी सफलता हासिल कर सके।
इसी तरह आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू का नेतृत्व फिर से उभरा, लेकिन जगन मोहन रेड्डी को बड़ा झटका लगा। ओडिशा में नवीन पटनायक का राजनीतिक करियर खत्म होने की कगार पर दिख रहा था। उद्धव ठाकरे का शिवसेना बनाम एकनाथ शिंदे का शिवसेना इस बार लोकसभा चुनावों में उद्धव ठाकरे को बड़ा झटका लगा जब एकनाथ शिंदे के शिवसेना को ‘धनुष और बाण’ चुनाव चिह्न मिल गया। जबकि उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूटीबी) को सिर्फ़ ‘मशाल’ से संतोष करना पड़ा। हालांकि, उद्धव की पार्टी और उनके महा विकास अघाड़ी गठबंधन को चुनावों में अप्रत्याशित सफलता मिली। जबकि भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति उनसे बहुत पीछे रह गई।
भाजपा बनी सबसे बड़ी पार्टी, लेकिन बहुमत नहीं मिला 2024 के लोकसभा चुनावों में 64.2 करोड़ से ज़्यादा मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया। 19 अप्रैल से 1 जून, 2024 तक सात चरणों में हुए चुनावों के नतीजे 5 जून को घोषित हुए। भाजपा 240 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और उसके एनडीए गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिला। चुनावों के दौरान आरोप-प्रत्यारोप का दौर पूरे चुनाव प्रचार के दौरान चुनावी धांधली के आरोप लगते रहे, जिसमें केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग और पक्षपाती मीडिया कवरेज शामिल थे। विपक्ष ने भाजपा पर राजनीतिक लाभ के लिए सरकारी तंत्र का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया, जबकि सत्तारूढ़ गठबंधन ने विपक्ष पर डर पैदा करने की कोशिश करने का आरोप लगाया।
2024 का साल: चुनावों का रंग, राजनीति का तूफ़ान! (Part 3) 2024 के चुनावों में भाजपा को विपक्ष की एक चाल ने हिला दिया! चुनावी वादों की बात करें तो भाजपा ने बेहतर शासन, आर्थिक सुधार और विकास जैसे वादे किए। दूसरी तरफ, विपक्ष ने महिलाओं को हर महीने 8000 रुपये देने, संविधान और आरक्षण बचाने, जातिगत जनगणना कराने जैसे वादे किए। पूरे चुनाव प्रचार के दौरान विपक्ष ने भाजपा पर संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने का आरोप लगाने की कोशिश की।महाराष्ट्र और यूपी के चुनाव नतीजों ने केंद्र में सत्ता का समीकरण बदल दिया! नतीजों में भाजपा को अकेले बहुमत हासिल नहीं हुआ, लेकिन उसके एनडीए गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिलकर सत्ता मिल गई। खासकर उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के चुनाव नतीजों ने ‘इंडिया ब्लॉक’ का मनोबल बढ़ाया और भाजपा को अकेले बहुमत हासिल करने से रोकने में अहम भूमिका निभाई।