उपराष्ट्रपति चुनाव 2025: सी.पी. राधाकृष्णन की जीत पर कांग्रेस ने दी बधाई, याद दिलाए सर्वपल्ली राधाकृष्णन के शब्द

कांग्रेस की ओर से नए उपराष्ट्रपति को बधाई: ‘लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने की उम्मीद’
एक नए युग की शुरुआत: राधाकृष्णन के उपराष्ट्रपति बनने पर कांग्रेस की शुभकामनाएँ-देश को अपना नया उपराष्ट्रपति मिल गया है, और इस महत्वपूर्ण अवसर पर, कांग्रेस पार्टी ने नव-निर्वाचित उपराष्ट्रपति श्री सी.पी. राधाकृष्णन को अपनी हार्दिक शुभकामनाएँ प्रेषित की हैं। कांग्रेस ने उम्मीद जताई है कि श्री राधाकृष्णन के कार्यकाल में संसद के भीतर लोकतांत्रिक परंपराएँ और भी सुदृढ़ होंगी। इस शुभ घड़ी में, कांग्रेस ने देश के पहले उपराष्ट्रपति, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के उन अनमोल शब्दों को भी याद किया, जो उन्होंने वर्ष 1952 में राज्यसभा की पहली बैठक के दौरान कहे थे। डॉ. राधाकृष्णन ने तब इस बात पर ज़ोर दिया था कि एक स्वस्थ लोकतंत्र तभी फलता-फूलता है जब विपक्ष को पूरी आज़ादी हो कि वह सरकार की नीतियों की आलोचना निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से कर सके। कांग्रेस का मानना है कि डॉ. राधाकृष्णन की यह सीख आज के समय में उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी उस दौर में थी, जब देश अपनी लोकतांत्रिक यात्रा की शुरुआत कर रहा था। यह याद दिलाता है कि विपक्ष की भूमिका केवल विरोध करना नहीं, बल्कि एक स्वस्थ संवाद के माध्यम से राष्ट्र निर्माण में योगदान देना भी है।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की विरासत: विपक्ष के महत्व पर प्रकाश-कांग्रेस महासचिव, जयराम रमेश, ने अपने एक विशेष संदेश में इस बात पर गहरा प्रकाश डाला कि डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने न केवल उपदेश दिए, बल्कि अपने कार्यकाल के दौरान उन सिद्धांतों का अक्षरशः पालन भी किया। 16 मई, 1952 को राज्यसभा के उद्घाटन सत्र में, डॉ. राधाकृष्णन ने अत्यंत विनम्रता से कहा था, “मैं किसी पार्टी से नहीं जुड़ा हूँ, इसका मतलब है कि मैं इस सदन की हर पार्टी से जुड़ा हूँ। मेरा प्रयास होगा कि लोकतंत्र की उच्चतम परंपराओं को बनाए रखते हुए, सभी दलों के साथ निष्पक्ष रहूँ, किसी के प्रति द्वेष न हो और सबके प्रति सद्भावना हो।” कांग्रेस इस बात पर ज़ोर देती है कि डॉ. राधाकृष्णन की यह सीख आज के दौर के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, खासकर तब जब हमारे सामने लोकतंत्र को और अधिक मज़बूत बनाने की एक बड़ी चुनौती है। यह हमें याद दिलाता है कि उपराष्ट्रपति का पद केवल एक संवैधानिक दायित्व नहीं, बल्कि एक नैतिक नेतृत्व का भी प्रतीक है, जहाँ सभी आवाज़ों का सम्मान हो और संवाद का द्वार हमेशा खुला रहे।
उपराष्ट्रपति चुनाव का लेखा-जोखा: एनडीए उम्मीदवार की शानदार जीत-हाल ही में संपन्न हुए उपराष्ट्रपति चुनाव में, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के उम्मीदवार, श्री सी.पी. राधाकृष्णन, ने एक प्रभावशाली जीत दर्ज की। श्री राधाकृष्णन ने कुल 452 वोट हासिल किए, जबकि विपक्षी खेमे के उम्मीदवार, श्री बी. सुदर्शन रेड्डी, को 300 वोट प्राप्त हुए। यह जीत उम्मीद से कहीं अधिक बड़े अंतर से हुई, जिसने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। इस चुनाव में कुल 781 सांसदों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया, जिसमें से 767 सांसदों ने वोट डाला, जिससे मतदान का प्रतिशत 98.2% रहा। डाले गए वोटों में से 752 वोट मान्य पाए गए, जबकि 15 वोटों को अमान्य घोषित किया गया। जीत के लिए आवश्यक 377 वोटों के आंकड़े को श्री राधाकृष्णन ने आसानी से पार कर लिया। नतीजों की घोषणा के बाद, कांग्रेस अध्यक्ष श्री मल्लिकार्जुन खड़गे ने न केवल श्री राधाकृष्णन को बधाई दी, बल्कि विपक्षी उम्मीदवार श्री रेड्डी के संघर्ष और उनके सिद्धांतों पर अडिग रहने वाले रुख की भी सराहना की।
कांग्रेस का दावा: विपक्ष की एकता में हुआ इजाफा-उपराष्ट्रपति चुनाव के नतीजों को स्वीकार करते हुए, कांग्रेस पार्टी ने यह दावा किया है कि इस बार के चुनाव में विपक्ष पहले की तुलना में कहीं अधिक एकजुट दिखाई दिया। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने इस बात पर प्रकाश डाला कि विपक्षी उम्मीदवार श्री बी. सुदर्शन रेड्डी को 40% वोट मिले, जबकि वर्ष 2022 में हुए उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष को मात्र 26% वोट ही मिले थे। इस आंकड़े के अनुसार, कांग्रेस का मानना है कि विपक्ष का प्रदर्शन इस बार काफी अधिक मजबूत और सम्मानजनक रहा है। पार्टी का यह भी कहना है कि यह केवल वोटों का गणित नहीं है, बल्कि यह इस बात का भी संकेत है कि वैचारिक लड़ाई लगातार जारी है। कांग्रेस का मानना है कि भले ही भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को संख्यात्मक जीत मिली हो, लेकिन यह जीत राजनीतिक और नैतिक दृष्टिकोण से उनके लिए एक प्रकार की हार ही है, क्योंकि विपक्ष ने अपनी एकजुटता और विचारों को मजबूती से प्रस्तुत किया।
न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) बी. सुदर्शन रेड्डी का विनम्र संदेश: ‘लोकतंत्र केवल जीत से नहीं, संवाद से बनता है’-उपराष्ट्रपति चुनाव के नतीजे आने के बाद, विपक्षी उम्मीदवार, न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) बी. सुदर्शन रेड्डी, ने अत्यंत विनम्रता और परिपक्वता के साथ अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने कहा कि वह इस हार को स्वीकार करते हैं, लेकिन साथ ही उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि लोकतंत्र की असली ताकत केवल जीत में नहीं, बल्कि संवाद, असहमति और सामूहिक भागीदारी की भावना में निहित होती है। श्री रेड्डी ने कहा कि भले ही इस बार परिणाम उनके पक्ष में नहीं आया हो, लेकिन जिस बड़े उद्देश्य के लिए विपक्ष ने यह चुनाव लड़ा, वह उद्देश्य आज भी जीवंत है और आगे भी जारी रहेगा। उनकी यह टिप्पणी स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि चुनावी राजनीति की सीमाओं से परे, लोकतंत्र की वास्तविक आत्मा विचारों की विविधता और खुले संवाद में ही निवास करती है। यह एक ऐसा संदेश है जो हमें याद दिलाता है कि हर चुनाव एक नई सीख लेकर आता है।



