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नौकरी घोटाला: क्या ममता बनर्जी इस मुश्किल से निकल पाएंगी?

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आज के भारत में हर चुनाव एक नेता या पार्टी के लिए जैसे अस्तित्व की लड़ाई बन चुका है। ये माहौल बीजेपी की लगातार बढ़त के चलते और भी तेज़ हो गया है। पश्चिम बंगाल में, जहां ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (TMC) का दबदबा है, एक बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले ने 2016 की शिक्षक भर्ती घोटाले को रद्द करते हुए 25,000 से ज्यादा नौकरियों को खारिज कर दिया है। इस फैसले ने TMC को संकट में डाल दिया है। 2026 के विधानसभा चुनाव में अब एक साल से भी कम वक्त बचा है, ऐसे में ये मामला ममता बनर्जी की पकड़ को कमजोर कर सकता है, खासकर मिडल क्लास वोटर्स के बीच। वहीं, बीजेपी को मौका मिल सकता है कि वो इस मुद्दे को भुना सके, और ममता की राजनीतिक ताकत की असली परीक्षा शुरू हो चुकी है। ये घोटाला TMC की नींव पर सीधा वार करता है। ममता बनर्जी ने खुद को आम लोगों की आवाज़ बताकर नौकरी और शिक्षा का वादा किया था। उनका असर लोअर मिडल क्लास से लेकर शहर के पढ़े-लिखे तबकों तक था। कोलकाता दक्षिण से वो 1991 से 2009 तक सांसद भी रही हैं, और यही इलाका उनके सबसे मज़बूत गढ़ों में से एक रहा है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने, जो कि कलकत्ता हाईकोर्ट के “भ्रष्ट भर्ती” के निष्कर्ष को सही ठहराता है, भरोसे को झकझोर दिया है। 25,000 से ज्यादा शिक्षक और स्टाफ रातों-रात बेरोज़गार हो गए। अगर हर परिवार में औसतन चार लोग मानें, तो एक करोड़ से ज्यादा लोग इस फैसले की चपेट में आ सकते हैं। ये सिर्फ एक नौकरी का मुद्दा नहीं है, ये एक सपना टूटने जैसा है। खासकर गांवों और छोटे शहरों में, जहां सरकारी नौकरी का मतलब था स्थिरता और सम्मान।

शहरी मिडल क्लास, खासकर कोलकाता और उसके आस-पास, अब खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। ये वो लोग हैं जो योग्यता और शिक्षा को सबसे ऊपर मानते हैं—ममता की राजनीति का आधार जिनमें से एक था। लेकिन अब जब स्कूलों में पढ़ाई बाधित हो रही है और पूरी भर्ती प्रक्रिया पर दाग लग गया है, तो इन लोगों का भरोसा डगमगाने लगा है। TMC के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री पार्थ चटर्जी की गिरफ्तारी, रैंकिंग में धांधली और रिश्वत के सबूत—ये सब मिलकर एक गुस्से की लहर पैदा कर चुके हैं। बहुत से ऐसे टीचर जो खुद को ईमानदार मानते थे, अब सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं। 2024 के लोकसभा चुनावों में इसके संकेत भी दिखे। TMC ने 29 सीटें तो जीतीं, लेकिन कोलकाता की 144 में से 47 वार्डों में बीजेपी आगे रही, और दो विधानसभा क्षेत्र भी उसने गंवा दिए। आरजी कर अस्पताल में हुई रेप और मर्डर की घटना ने मिडल क्लास के गुस्से को और भी भड़का दिया। अब जब अगला चुनाव करीब है, तो ये नाराज़गी वोटों में तब्दील हो सकती है, खासकर TMC के गढ़ों में। ‘मां, माटी, मानुष’ का नारा अब खोखला लग रहा है जब सरकार की नाकामी साफ दिख रही है। अगर ममता विपक्ष में होतीं, तो शायद अब तक पूरे बंगाल में आंदोलन छेड़ देतीं, जैसे उन्होंने 2007 में सिंगूर और नंदीग्राम में किया था। लेकिन अब वो सत्ता में हैं, और विपक्ष बिखरा हुआ। वामपंथी दल पहले जैसे प्रभाव में नहीं हैं और बीजेपी के पास भी कोई ऐसा चेहरा नहीं है जो ममता की बराबरी कर सके। हालांकि, बीजेपी नेता सुवेंदु अधिकारी और सुकांत मजूमदार इस घोटाले को ममता पर हमला करने का हथियार बना रहे हैं और उनके इस्तीफे की मांग कर रहे हैं।

लेकिन फिर भी बीजेपी की हालत मजबूत नहीं कही जा सकती। उनका बंगाल यूनिट बिखरा हुआ है, और ममता जैसी करिश्माई शख्सियत उनके पास नहीं है। लोगों के गुस्से को वोटों में बदलने के लिए सिर्फ नाराज़गी नहीं, एक बेहतर विकल्प की जरूरत है—जो बीजेपी के पास फिलहाल नहीं है। 2019 में बीजेपी ने 18 लोकसभा सीटें जीती थीं, जो 2024 में घटकर 12 रह गईं—ये उनके संगठनात्मक मुद्दों को दिखाता है। वहीं, ममता ध्रुवीकरण की राजनीति में माहिर हैं। उन्होंने इशारा भी कर दिया है कि कोर्ट का फैसला बीजेपी और वाम दलों की मिलीभगत है। बंगाल का वोटर अक्सर ममता को ‘पीड़ित’ के रूप में देखता है और उसके साथ खड़ा हो जाता है—ये उनकी बड़ी ताकत है।

फिर भी सवाल है—क्या ममता इस संकट से उबर पाएंगी? इसके तीन कारण हैं जो उनके पक्ष में जाते हैं। पहला, वो मुश्किल हालात में और ज्यादा मजबूत होकर सामने आती हैं। वाम मोर्चा से लड़ाई से लेकर शारदा और नारदा मामलों तक, वो हर बार उभरकर सामने आई हैं। दूसरा, बंगाल की गरीबी और लोगों की ममता की योजनाओं पर निर्भरता—जैसे कन्याश्री और लक्ष्मी भंडार—उनके लिए एक बड़ा वोट बैंक है। खासकर महिलाएं, जिन्हें डर है कि सरकार बदलने पर ये लाभ बंद हो सकते हैं। तीसरा, राज्य में 30% से ज्यादा अल्पसंख्यक वोटर हैं, जो बीजेपी को लेकर आशंकित रहते हैं, और इस वजह से ममता के साथ बने रहते हैं। शिक्षक भर्ती घोटाला, आरजी कर केस और सरकारी नाकामी लोगों को परेशान कर रही है। 25,000 परिवारों की बेरोजगारी और एक करोड़ प्रभावित लोग ममता के लिए एक बड़ी चुनौती हैं। लेकिन विपक्ष अगर सही रणनीति नहीं बनाता, तो शायद उसे ममता को हराना आसान नहीं होगा। कोर्ट के फैसले के बाद ममता ने बर्खास्त शिक्षकों से मुलाकात की और उन्हें वैकेंसी का भरोसा दिया है—यानी वो अभी भी मुकाबले में हैं। ये संकट सिर्फ TMC का इम्तिहान नहीं है, ममता बनर्जी की पूरी राजनीतिक विरासत का इम्तिहान है। अब पूरा बंगाल देख रहा है कि क्या उनकी ‘दीदी’ एक बार फिर मुश्किलों को मात दे पाएंगी।

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