राद्ध पक्ष में पूर्वजों को करें खीर, मालपुआ अर्पण, सालभर नहीं लगती भूख
पूर्वजों की याद में मनाए जाने वाले पितृ पक्ष के दौरान 15 दिनों तक प्रतिदिन पितरों को अर्पण-तर्पण करने से पितृ प्रसन्न होते है। हिंदू पंचांग की जिस तिथि को पूर्वजों की मृत्यु हुई हो, पितृ पक्ष में उसी तिथि पर श्राद्ध करने की परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष में पूर्वजों को खीर, मालपुआ आदि व्यंजनों का भोग लगाने से पितृगण तृप्त होते हैं, उन्हें सालभर भूख नहीं लगती। पितृगण अपने स्वजनों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
पितृ पक्ष अशुभ नहीं होता बल्कि यह अवसर पितरों से आशीर्वाद लेने का होता है। ऐसी मान्यता है कि धर्मराज एक साल में 15 दिनों के लिए पितरों को मृत्यु लोक में भेजते हैं। यदि पितरों को श्रद्धा और सम्मान मिलता है तो वे खुश होकर आशीर्वाद देते हैं। पितर इन दिनों अपने घर पर आने के लिए उसी तरह खुश होते हैं, जैसे हमारी बहु बेटियां छुट्टीयों में मायके आने का इंतजार करतीं हैं। श्राद्ध से एक दिन पहले द्वार की सफाई करके फूल बिखेरकर स्वागत करें। श्राद्ध वाले दिन ब्राह्मण को भोजन करवाकर उन्हें खुशी खुशी बिदा करना चाहिए।
छत्तीसगढ़ संत महासभा के अध्यक्ष ज्योतिषाचार्य राजेश्वरानंद सरस्वती के अनुसार 21 सितंबर को प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध किया जाएगा। पंचमी तिथि इस बार दो दिन 25 एवं 26 सितंबर को मनाएंगे।
कि बुजुर्गों के जीवित रहते उनका ध्यान रखें, किसी भी चीज के लिए उन्हें तरसायें नहीं। हम अपने स्वयं के लिए, अपनी पत्नी एवं बच्चों के लिए जब बहुत कुछ कर सकते हैं तो फिर घर के बुजुर्गों के लिए क्यों नहीं? मृत्यु उपरांत के जो श्राद्ध तर्पण कर्म है वो तो करना ही है किंतु उनके जीवित रहते में ही उनका ध्यान, आदर, सम्मान करना ज्यादा श्रेयस्कर है।
माता-पिता, दादा – दादी, नाना – नानी जो भी बुजुर्ग और पूर्वज यदि जीवित हैं तो उनके जीवित रहते में ही उन्हें आदर, सम्मान दें, मधुर वचन बोलें, उनके प्रिय भोजन, मीठा, खट्टा जो भी उन्हें अच्छा लगता हो उन्हें खिलाएं, उनका ध्यान रखें क्योंकि यदि हमारे घर के बुजुर्ग जीवित रहने मे ही तृप्त रहेंगे तो उनका आशीर्वाद फलेगा और इहलोक व परलोक दोनों सफल होंगे।
नदी, तालाब में तर्पण करना ज्यादा श्रेयस्कर कहा गया है। संभव न हो तो परात या थाल में शुद्ध जल लेकर भी तर्पण कर सकते हैं। एक बाल्टी में साफ जल रख लें। उसमें गाय का दूध, चंदन, श्वेत पुष्प, जौ, तिल, चावल और कुश मिलाकर दक्षिण दिशा में दोनों हाथों को मिलाकर जल अर्पित करें।