भारत-चीन रिश्तों में नई शुरुआत: साझेदारी की ओर बढ़ते कदम

भारत-चीन दोस्ती का नया सवेरा: क्या बदलेंगे रिश्ते?-भारत और चीन के बीच काफी समय से चले आ रहे तनाव और अनबन के बाद अब उम्मीद की किरण दिख रही है। चीन के विदेश मंत्री वांग यी की दिल्ली यात्रा ने रिश्तों में गर्माहट लाने का काम किया है। उन्होंने साफ कहा कि भारत और चीन को एक-दूसरे का दुश्मन नहीं, बल्कि एक-दूसरे का साथी समझना चाहिए। यह मुलाकात ऐसे समय पर हुई है जब हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी जल्द ही चीन जाने वाले हैं, जहाँ वे शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की मीटिंग में शामिल होंगे। यह एक बड़ा संकेत है कि दोनों देश मिलकर आगे बढ़ना चाहते हैं।
75 साल की साझेदारी: अब ‘चुनौती’ नहीं, ‘अवसर’ की बात-इस साल भारत और चीन के कूटनीतिक रिश्ते पूरे 75 साल के हो गए हैं। वांग यी का मानना है कि इतने लंबे समय के बाद, दोनों देशों को यह समझना चाहिए कि एक-दूसरे को मुश्किलों के तौर पर देखने के बजाय, हमें एक-दूसरे के लिए अवसर पैदा करने चाहिए। उनका कहना है कि हमें अपनी सारी ताकत और संसाधन आपसी शक या लड़ाई में बर्बाद करने के बजाय, अपने देशों के विकास और तरक्की पर लगाने चाहिए। पूर्वी लद्दाख में हुई कुछ घटनाओं के बाद से रिश्ते काफी ठंडे पड़ गए थे, लेकिन अब लगता है कि हालात सुधर रहे हैं। वांग यी ने कहा कि अगर भारत और चीन सही सोच और प्लानिंग के साथ साथ आएं, तो सिर्फ एशिया ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में शांति और सुरक्षा का माहौल बन सकता है। इस बातचीत के बाद दोनों देशों ने यह भी तय किया है कि रिश्तों को बेहतर बनाने की यह कोशिश जारी रहेगी।
सहयोग का नया प्लान: साथ मिलकर करेंगे विकास-चीन ने इस मुलाकात में यह साफ कर दिया है कि वह “दोस्ती, आपसी फायदे और सबको साथ लेकर चलने” के रास्ते पर चलना चाहता है। वांग यी का कहना है कि भारत और चीन जैसे बड़े और पड़ोसी देशों को एक-दूसरे पर भरोसा और सम्मान दिखाते हुए आगे बढ़ना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि अगर दोनों देश एक-दूसरे के रास्ते की रुकावटें हटा दें और मिलकर काम करें, तो हमारे रिश्ते बहुत ऊंचाइयों पर जा सकते हैं। भारत और चीन दोनों ही बहुत पुरानी और महान सभ्यताएं हैं, और अगर ये दोनों फिर से मिलकर तरक्की करें तो यह एक-दूसरे के लिए बहुत फायदेमंद होगा। वांग के अनुसार, यह आपसी तालमेल पूरे एशिया और दुनिया में स्थिरता लाने में बहुत मदद करेगा। इस बातचीत में यह भी तय हुआ कि दोनों देशों को सीमा पर शांति बनाए रखनी होगी और आपस में बातचीत को और बढ़ाना होगा।
दुनिया की राजनीति में भारत-चीन की बड़ी जिम्मेदारी-वांग यी ने इस दौरान अमेरिका पर भी इशारों-इशारों में कहा कि दुनिया में आजकल “एकतरफा दबाव और दादागिरी की राजनीति” बढ़ रही है। ऐसे समय में जब अंतरराष्ट्रीय व्यापार और दुनिया की व्यवस्था पर खतरा मंडरा रहा है, भारत और चीन जैसे विकासशील देशों की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। उन्होंने कहा कि आज दुनिया की 2.8 अरब से ज्यादा आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले भारत और चीन को सिर्फ अपने देशों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल कायम करनी चाहिए। ये दोनों देश मिलकर दुनिया में एक संतुलन ला सकते हैं और अंतरराष्ट्रीय रिश्तों में सबको बराबरी का हक दिलाने में मदद कर सकते हैं।
सीमा का मसला और आगे की बातचीत-दिल्ली में हुई यह मुलाकात सिर्फ रिश्तों को सुधारने की एक कोशिश नहीं थी, बल्कि यह सीमा पर चल रहे विवाद को सुलझाने की बातचीत का भी एक अहम हिस्सा थी। वांग यी भारत इसलिए आए थे ताकि वे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के साथ मिलकर विशेष प्रतिनिधि (SR) वार्ता का अगला दौर कर सकें। यह मीटिंग सीमा विवाद को हल करने के लिए बनाई गई खास व्यवस्था का एक हिस्सा है। आपको बता दें कि अजीत डोभाल पिछले साल चीन गए थे और वहां 23वें दौर की बातचीत में शामिल हुए थे। तब प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने यह तय किया था कि दोनों देश बातचीत की पुरानी व्यवस्थाओं को फिर से शुरू करेंगे। इस मौजूदा मुलाकात को उसी प्रक्रिया की एक महत्वपूर्ण कड़ी माना जा रहा है।



