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“चाबहार बंदरगाह पर अमेरिकी छूट खत्म: भारत की रणनीति और व्यापार पर कितना पड़ेगा असर?”

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चाबहार का खेल: अमेरिका के फैसले से भारत की राह मुश्किल?

भारत और ईरान के बीच दोस्ती का नया अध्याय: चाबहार पोर्ट-ज़रा सोचिए, भारत और ईरान के बीच एक ऐसा पुल बन रहा है जो सिर्फ दो देशों को नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र को जोड़ने की ताकत रखता है। यह पुल है चाबहार बंदरगाह, जो ईरान के दक्षिणी तट पर, ओमान की खाड़ी के किनारे शान से खड़ा है। भारत ने 2024 में इस बंदरगाह के प्रबंधन की कमान अपने हाथों में ली, वो भी पूरे 10 साल के लिए! यह कोई छोटी-मोटी बात नहीं, बल्कि भारत की एक बड़ी रणनीतिक जीत थी। सरकारी कंपनी इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (IPGL) और ईरान के बंदरगाह प्राधिकरण के बीच हुआ यह समझौता, भारत को पहली बार किसी विदेशी बंदरगाह का सीधा प्रबंधन करने का मौका दे रहा था। इसे तो इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर का दिल कहा जा रहा है, जो भारत को सीधे रूस और यूरोप से जोड़ सकता है। और हाँ, यह पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट के बिल्कुल करीब है, तो आप समझ ही सकते हैं कि इसका सामरिक महत्व कितना ज़्यादा है। यह भारत के लिए अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुँचने का एक ऐसा रास्ता खोलता था, जो पाकिस्तान को बायपास करता था।

अमेरिका का यू-टर्न: भारत की चिंता क्यों बढ़ी?-लेकिन अब कहानी में एक नया मोड़ आया है, और वो भी ऐसा कि भारत की चिंता बढ़ गई है। अमेरिका ने चाबहार बंदरगाह पर दी जाने वाली छूट को खत्म करने का फैसला कर लिया है। अमेरिकी विदेश विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि 2018 में अफगानिस्तान की मदद के लिए यह छूट दी गई थी, लेकिन अब इसे वापस ले लिया गया है। इसका सीधा मतलब है कि 29 सितंबर 2025 से, जो भी कंपनी या व्यक्ति इस बंदरगाह से जुड़ी किसी भी गतिविधि में शामिल होगा, वो अमेरिकी प्रतिबंधों के दायरे में आ सकता है। भारत के लिए यह एक बड़ा झटका है, क्योंकि 2003 से ही भारत इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने के लिए प्रयासरत था। ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर लगे अमेरिकी प्रतिबंधों ने पहले ही इस प्रोजेक्ट की रफ्तार धीमी कर दी थी, और अब छूट खत्म होने से भारत की सारी योजनाएं फिर से अधर में लटक सकती हैं। यह फैसला भारत के लिए इसलिए भी मायने रखता है क्योंकि यह अफगानिस्तान और मध्य एशिया से जुड़ने का एक महत्वपूर्ण जरिया था।

व्यापार और रणनीति पर असर: आगे क्या होगा?-भारत ने पिछले कुछ सालों में चाबहार बंदरगाह का इस्तेमाल बड़े ही अहम कामों के लिए किया है। 2021 में भारत ने यहाँ से ईरान को कीटनाशक दवाएं भेजीं, और 2023 में अफगानिस्तान तक 20,000 टन गेहूं पहुँचाया। यह सिर्फ व्यापार नहीं था, बल्कि क्षेत्रीय सहयोग को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम था। अमेरिका के इस फैसले से भारत की रणनीतिक बढ़त पर सीधा असर पड़ सकता है। अफगानिस्तान और मध्य एशिया से जुड़ने का भारत का सबसे आसान रास्ता अब और भी मुश्किल हो जाएगा। वहीं, चीन और पाकिस्तान इस मौके का फायदा उठाकर इस क्षेत्र में अपनी पकड़ और मजबूत कर सकते हैं। अब भारत के लिए यह सोचना बहुत ज़रूरी है कि वह अपनी आगे की रणनीति कैसे तैयार करे, ताकि उसके अपने हित सुरक्षित रहें और इस बदलते क्षेत्रीय समीकरण में वह पीछे न रह जाए।

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