अमेरिका की ग्रीनलैंड नीति पर पुतिन का हमला, बोले- रूस अपने अधिकारों से कोई समझौता नहीं करेगा

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने गुरुवार को कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा ग्रीनलैंड पर नियंत्रण की कोशिश कोई चौंकाने वाली बात नहीं है, क्योंकि अमेरिका लंबे समय से इस खनिज संपदा से भरपूर क्षेत्र में रुचि रखता रहा है। आर्कटिक पोर्ट मुरमान्स्क में एक नीति फोरम के दौरान पुतिन ने बताया कि अमेरिका ने पहली बार 19वीं सदी में ग्रीनलैंड पर नियंत्रण का विचार किया था और फिर द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इसे डेनमार्क से खरीदने की पेशकश भी की थी। “यह पहली नजर में जरूर चौंकाने वाला लग सकता है, लेकिन यह मान लेना गलत होगा कि यह सिर्फ मौजूदा अमेरिकी प्रशासन की कोई सनक है। यह साफ है कि अमेरिका अपने भू-रणनीतिक, सैन्य-राजनीतिक और आर्थिक हितों को आर्कटिक में लगातार आगे बढ़ाता रहेगा,” पुतिन ने कहा। डोनाल्ड ट्रंप ने ग्रीनलैंड पर नियंत्रण को लेकर जो सुझाव दिया था, उससे यूरोप के कई देशों में नाराजगी देखने को मिली। ग्रीनलैंड डेनमार्क का एक स्वशासी क्षेत्र है और डेनमार्क अमेरिका का सहयोगी और नाटो सदस्य भी है। ग्रीनलैंड की भौगोलिक स्थिति इसे और भी महत्वपूर्ण बनाती है, क्योंकि यह आर्कटिक और उत्तरी अटलांटिक महासागर के रास्तों पर स्थित है। चीन और रूस भी यहां के जलमार्गों और प्राकृतिक संसाधनों तक पहुंच बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वांस और उनकी पत्नी शुक्रवार को ग्रीनलैंड में एक अमेरिकी सैन्य अड्डे का दौरा करने वाले हैं, हालांकि ग्रीनलैंड के लोगों और डेनमार्क की आपत्तियों के बाद इस यात्रा को सीमित कर दिया गया है। गुरुवार को अपने संबोधन में पुतिन ने यह भी कहा कि रूस आर्कटिक में नाटो की बढ़ती गतिविधियों को लेकर चिंतित है और इसका जवाब अपनी सैन्य क्षमताओं को मजबूत करके देगा। “हमें इस बात की चिंता है कि नाटो देश आर्कटिक क्षेत्र को संभावित संघर्ष क्षेत्र के रूप में देख रहे हैं,” पुतिन ने कहा। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि रूस के पड़ोसी देश फिनलैंड और स्वीडन अब नाटो में शामिल हो चुके हैं।”रूस ने कभी आर्कटिक में किसी को धमकी नहीं दी है, लेकिन हम हालात पर नजर रखेंगे और जरूरत के हिसाब से अपनी सैन्य ताकत बढ़ाएंगे व सैन्य ढांचे को आधुनिक बनाएंगे,” पुतिन ने जोड़ा। जलवायु परिवर्तन के कारण आर्कटिक क्षेत्र में बर्फ पिघलने से नए संसाधनों और व्यापार मार्गों के अवसर बढ़ गए हैं। ऐसे में रूस, अमेरिका, कनाडा, डेनमार्क और नॉर्वे इस इलाके में अपना प्रभाव बढ़ाने की होड़ में हैं। चीन भी इस क्षेत्र में रुचि दिखा रहा है, जहां पृथ्वी के कुल अज्ञात तेल और गैस भंडार का एक चौथाई हिस्सा मौजूद होने का अनुमान है।
“हम अपने देश की संप्रभुता से किसी तरह की छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं करेंगे। हम अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करेंगे और आर्कटिक क्षेत्र में शांति व स्थिरता बनाए रखेंगे,” पुतिन ने कहा। हालांकि, सैन्य ताकत बढ़ाने के अपने संकल्प के बावजूद पुतिन ने कहा कि रूस आर्कटिक में अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए दरवाजे खुले रखेगा। “हमारी स्थिति जितनी मजबूत होगी, हमारे पास उतने ही बेहतर अवसर होंगे कि हम आर्कटिक में अंतरराष्ट्रीय परियोजनाएं शुरू कर सकें, खासकर उन देशों के साथ जो हमारे मित्र हैं। और संभव है कि भविष्य में पश्चिमी देश भी इसमें दिलचस्पी दिखाएं। मुझे यकीन है कि सही समय आने पर ऐसे प्रोजेक्ट शुरू होंगे,” पुतिन ने कहा। रूसी डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट फंड के प्रमुख और अंतरराष्ट्रीय निवेश के लिए पुतिन के विशेष दूत किरिल दिमित्रियेव ने पिछले महीने अमेरिकी अधिकारियों से बातचीत के बाद कहा था कि रूस और अमेरिका को मिलकर ऊर्जा परियोजनाओं पर काम करना चाहिए। “हमें संयुक्त प्रोजेक्ट्स की जरूरत है, खासकर आर्कटिक और अन्य क्षेत्रों में,” उन्होंने कहा।