आरबीआई के नए गवर्नर ने दी राहत के संकेत, दरों में कटौती की उम्मीद

आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा के 100 दिन: ग्रोथ को बढ़ावा देने वाला रुख अपनाया भारत के नए आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने अपने शुरुआती 100 दिनों में आर्थिक विकास को बढ़ावा देने वाली नीतियों पर जोर दिया है। उन्होंने यह संकेत दिया है कि अगर जरूरत पड़ी तो ब्याज दरों में और कटौती की जा सकती है और बाजार में नकदी की उपलब्धता बनाए रखी जाएगी, ताकि अर्थव्यवस्था वैश्विक व्यापार में बढ़ती चुनौतियों का सामना कर सके। पहले 100 दिनों में लिए गए अहम फैसले संजय मल्होत्रा ने दिसंबर में कार्यभार संभालने के बाद पांच साल में पहली बार ब्याज दरों में कटौती की है, बैंकिंग सिस्टम में करीब 60 अरब डॉलर की नकदी डाली है, रुपये की विनिमय दर को गिरने दिया है और बैंकों के लोन देने पर लगी पाबंदियों को आसान बनाया है। यह रुख उनके पूर्ववर्ती शक्तिकांत दास से बिल्कुल अलग है, जिन्होंने दो साल तक ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया था ताकि महंगाई को नियंत्रित रखा जा सके। हालांकि, सरकार का मानना है कि इस सख्त नीति के चलते पिछले साल अर्थव्यवस्था में अप्रत्याशित गिरावट देखने को मिली।
नई दिल्ली के अधिकारियों के अनुसार, महंगाई में गिरावट आने से आरबीआई के पास अब ब्याज दरों में कटौती करने की ज्यादा गुंजाइश है, खासकर ऐसे समय में जब वैश्विक व्यापार अस्थिरता का सामना कर रहा है। सरकार चाहती है कि आरबीआई अपनी मौद्रिक नीति को और लचीला बनाए, क्योंकि मौजूदा समय में कर्ज मिलने में दिक्कतें बढ़ रही हैं और तरलता की तंगी बनी हुई है। बैंकों की चिंताओं पर आरबीआई की प्रतिक्रिया हालांकि सरकार ने आरबीआई को कोई सीधा निर्देश नहीं दिया है, लेकिन बीते दो महीनों में बैंकिंग सेक्टर के शीर्ष अधिकारियों ने आरबीआई से मुलाकात कर लोन बांटने की घटती क्षमता को लेकर चिंता जताई। संजय मल्होत्रा, जो पहले वित्त मंत्रालय में उच्च पद पर रह चुके हैं, स्पष्ट रूप से कह चुके हैं कि उनकी प्राथमिकता अर्थव्यवस्था को गति देना है। उन्होंने अपनी पहली मौद्रिक नीति बैठक (फरवरी) में कहा था, “हमें उच्च विकास दर बनाए रखने की जरूरत है, साथ ही महंगाई को संतुलित रखना होगा। इसके लिए मौद्रिक नीति के विभिन्न साधनों का उपयोग जरूरी है।” आगे क्या होगा? नए आरबीआई गवर्नर ने उन प्रस्तावित नियमों को भी खारिज कर दिया है, जो बैंकों को अधिक नकदी भंडार रखने के लिए बाध्य करते। साथ ही गैर-बैंक वित्तीय कंपनियों को दिए जाने वाले कर्ज के जोखिम भार (Risk Weight) को कम किया है, ताकि कर्ज वितरण को बढ़ावा दिया जा सके।
इसका मुख्य उद्देश्य धीमी होती अर्थव्यवस्था को रफ्तार देना है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, मार्च 2024 तक देश की विकास दर 6.5% रहने की संभावना है, जो महामारी के बाद सबसे कम होगी। सरकार अगले वित्त वर्ष में 6.3% से 6.8% के बीच ग्रोथ का अनुमान लगा रही है, लेकिन यह 8% की उस दर से कम है, जिसे 2047 तक भारत को विकसित देश बनाने के लिए जरूरी माना जा रहा है। बाजार विश्लेषकों का मानना है कि आरबीआई आगे भी ब्याज दरों में कटौती और नकदी प्रवाह बढ़ाने की दिशा में कदम उठाएगा, ताकि सरकार की विकास दर को तेज करने की योजना को समर्थन मिल सके। बाजार और निवेशकों की प्रतिक्रिया आरबीआई गवर्नर की नीतियों को लेकर बाजार में सकारात्मक संकेत मिल रहे हैं। सैमसरा वांग, जो हांगकांग स्थित पाइनब्रिज इन्वेस्टमेंट एशिया लिमिटेड में एशियाई ऋण बाजार की विशेषज्ञ हैं, कहती हैं, “संजय मल्होत्रा ने अपनी नीति को स्पष्ट रूप से विकास उन्मुख बनाया है। वे ब्याज दरों में कटौती, नकदी प्रवाह बढ़ाने और नियमों में ढील देकर 6.5% से अधिक विकास दर हासिल करना चाहते हैं।” इस साल अब तक विदेशी निवेशकों ने $5.9 अरब का भारतीय बॉन्ड खरीदा है, हालांकि उन्होंने $14.7 अरब की इक्विटी बाजार से निकासी भी की है। निवेशकों का मानना है कि आने वाले दिनों में आरबीआई और सरकार दोनों की नीतियां आर्थिक विकास और उपभोक्ता मांग को बढ़ाने पर केंद्रित होंगी।
क्या कह रहे हैं अर्थशास्त्री? सिटीग्रुप और डॉयचे बैंक के विशेषज्ञों का अनुमान है कि आरबीआई अप्रैल 9 को होने वाली अगली मौद्रिक नीति बैठक में अपने रुख को “अनुकूल (accommodative)” बना सकता है, यानी आगे और दर कटौती की संभावना है। IDFC फर्स्ट बैंक के अनुसार, अगले वित्त वर्ष में आरबीआई को बॉन्ड खरीद और विदेशी मुद्रा स्वैप जैसे उपायों से बाजार में $23.3 अरब की नकदी डालनी होगी। स्थिरता बनाए रखने की कोशिश आरबीआई की तरफ से भी यह संकेत मिला है कि महंगाई को नियंत्रित रखते हुए आर्थिक विकास को समर्थन देना उसकी प्राथमिकता बनी रहेगी। हालांकि, एक अधिकारी ने बताया कि गवर्नर बदलने से केंद्रीय बैंक की मूल नीतियां नहीं बदलतीं, क्योंकि आरबीआई का मुख्य लक्ष्य कीमतों में स्थिरता बनाए रखते हुए अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना है। आरबीआई और वित्त मंत्रालय ने इस विषय पर कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की है, लेकिन निवेशक और बाजार विश्लेषक आने वाले समय में अधिक राहत भरे कदमों की उम्मीद कर रहे हैं। बॉन्ड और शेयर बाजार में क्या होगा असर? निवेशकों ने संकेत दिया है कि वे नीतियों में नरमी आने की उम्मीद में भारत में बॉन्ड खरीदने की योजना बना रहे हैं। ट्रस्ट म्यूचुअल फंड के फिक्स्ड इनकम हेड जलपन शाह का कहना है, “सरकार और आरबीआई की नीति अब साफ तौर पर विकास और उपभोक्ता मांग को बढ़ाने की दिशा में बढ़ रही है। इससे बॉन्ड मार्केट और जोखिम वाले एसेट्स (शेयर बाजार) दोनों के लिए सकारात्मक माहौल बनेगा।” निष्कर्ष संजय मल्होत्रा के नेतृत्व में आरबीआई अब आर्थिक विकास को प्राथमिकता देने की नीति अपना रहा है। सरकार और बाजार दोनों को उम्मीद है कि आने वाले महीनों में और राहत भरे कदम उठाए जाएंगे, जिससे न केवल कर्ज की उपलब्धता बढ़ेगी, बल्कि निवेश और उपभोग भी मजबूत होंगे।