हरियाणा की बेटी मनीषा की मौत का मामला अब CBI को सौंपा गया: क्या मिलेगा परिवार को इंसाफ?

मनीषा की मौत: इंसाफ की लड़ाई जिसने हिला दिया हरियाणा!
जब एक बेटी की मौत बन गई सिस्टम के खिलाफ आवाज़-भिवानी की रहने वाली 19 साल की मनीषा, जो एक होनहार शिक्षिका थी, उसकी मौत की खबर ने पूरे हरियाणा को झकझोर कर रख दिया। 11 अगस्त को जब वो स्कूल से घर के लिए निकली, तो किसी ने सोचा भी नहीं था कि उसका सफर यहीं थम जाएगा। दो दिन बाद, जब उसकी लाश एक खेत में मिली, तो पूरे इलाके में मातम के साथ-साथ गुस्से की लहर दौड़ गई। लोगों का गुस्सा इतना भयंकर था कि उन्होंने सड़कों पर उतरकर धरना दिया और साफ तौर पर कहा कि जब तक इस मामले की जांच सीबीआई को नहीं सौंपी जाती, तब तक वे अपनी लाडली का अंतिम संस्कार नहीं करेंगे। परिवार की मांगें यहीं नहीं रुकीं, उन्होंने यह भी कहा कि जब तक उनकी बेटी का पोस्टमार्टम दिल्ली के AIIMS में निष्पक्ष तरीके से नहीं होता, तब तक वे अपनी बेटी के शव को नहीं उठाएंगे। गांव धानी लक्ष्मण के लोगों ने मिलकर एक धरना समिति बनाई और ऐलान कर दिया कि जब तक उनकी जायज मांगें पूरी नहीं होतीं, उनका आंदोलन ऐसे ही चलता रहेगा। आखिरकार, सरकार को जनता के दबाव के आगे झुकना पड़ा और मनीषा का तीसरा पोस्टमार्टम AIIMS दिल्ली में कराने का फैसला लिया गया। इस फैसले के बाद ही परिवार ने अंतिम संस्कार के लिए हामी भरी। यह सिर्फ एक लड़की की मौत की कहानी नहीं है, बल्कि यह सिस्टम और जनता के बीच विश्वास की एक बड़ी लड़ाई बन गई थी, जिसने साबित कर दिया कि जब जनता एकजुट होती है, तो बड़े से बड़े फैसले भी बदलने पड़ते हैं।
पुलिस और सरकार के दावों पर जनता का अविश्वास-मनीषा के पिता, संजय, ने शुरू से ही इस बात पर जोर दिया कि उनकी बेटी कभी भी आत्महत्या जैसा कदम नहीं उठा सकती। उन्होंने पुलिस और प्रशासन द्वारा पहले दिन से ही इस मामले को आत्महत्या बताने के दावों को सिरे से खारिज कर दिया और न्याय की गुहार लगाई। पुलिस की शुरुआती जांच में यह सामने आया था कि मनीषा ने खुद कीटनाशक खरीदा था, उसके पास से एक कथित सुसाइड नोट भी मिला था, और विसरा रिपोर्ट में भी जहर की पुष्टि हुई थी। लेकिन, ग्रामीणों का मानना था कि यह पूरी कहानी बेहद संदिग्ध है और प्रशासन किसी भी तरह से इस मामले को दबाने की कोशिश कर रहा है। शुरुआती दो पोस्टमार्टम रिपोर्ट्स, जो भिवानी और रोहतक में हुईं, उनमें भी किसी भी तरह के यौन शोषण की पुष्टि नहीं हुई थी। लेकिन जनता इन नतीजों से बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं थी और इसी वजह से वे सड़कों पर उतर आए। हालात इतने बिगड़ गए कि मोबाइल इंटरनेट सेवाएं बंद करनी पड़ीं और भारी संख्या में पुलिस बल तैनात करना पड़ा। विपक्ष ने भी इस घटना को कानून-व्यवस्था की नाकामी बताते हुए सरकार पर जमकर सवाल उठाए। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा ने इस पूरे मामले को बेहद दुर्भाग्यपूर्ण बताया और कहा कि सरकार और पुलिस इस मामले को बिल्कुल भी गंभीरता से नहीं ले रहे हैं और जानबूझकर इसे आत्महत्या का रूप देने की कोशिश कर रहे हैं। यह जनता के विश्वास का टूटना ही था कि उन्हें सड़कों पर उतरना पड़ा।
सीबीआई जांच की मांग क्यों बनी इतनी ज़रूरी?-जब मामला बढ़ता गया और जनता का दबाव भी लगातार बना रहा, तब आखिरकार मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने खुद आगे आकर कहा कि मनीषा हमारी बेटी है और उसके परिवार को पूरा इंसाफ मिलेगा। उन्होंने एक बड़ी घोषणा करते हुए कहा कि परिवार की मांग को मानते हुए अब इस केस की जांच सीबीआई को सौंप दी गई है। इससे पहले, महिला आयोग की चेयरपर्सन रेनू भाटिया भी भिवानी पहुंचीं और उन्होंने परिवार को पूरा भरोसा दिलाया कि वे उनके साथ खड़ी हैं और हर संभव मदद करेंगी। जनता और परिवार का विश्वास तब जाकर कुछ हद तक बहाल हुआ, जब सरकार ने सीबीआई जांच और AIIMS में पोस्टमार्टम, दोनों ही प्रमुख मांगें मान लीं। भाकियू (चौधरी) के प्रमुख गुरनाम सिंह चरूनी ने भी इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अब परिवार संतुष्ट है और गुरुवार को अंतिम संस्कार किया जाएगा। यह पूरा घटनाक्रम इस बात का एक जीता-जागता सबूत है कि जब प्रशासन पर लोगों का भरोसा उठ जाता है, तो जनता को मजबूर होकर सड़कों पर उतरना पड़ता है। सरकार के लिए यह सिर्फ एक केस नहीं था, बल्कि यह जनता के विश्वास को जीतने या हारने का एक बड़ा इम्तिहान बन गया था, जिसमें सरकार को आखिरकार जनता की आवाज सुननी पड़ी।
राजनीति गरमाई, समाज पर भी उठे सवाल-मनीषा की मौत के बाद पूरे प्रदेश में राजनीति भी गरमा गई। विपक्षी दलों ने इस घटना को सीधे-सीधे सरकार की बड़ी विफलता करार दिया। कांग्रेस सहित कई प्रमुख नेताओं ने कहा कि सरकार और पुलिस ने शुरुआत से ही इस मामले में घोर लापरवाही बरती है और सच्चाई को दबाने की पूरी कोशिश की गई है। गांव में कई दिनों तक तनाव का माहौल बना रहा और कानून-व्यवस्था की स्थिति पर भी गंभीर सवाल खड़े हो गए। यह घटना एक बहुत बड़ा सामाजिक सवाल भी हमारे सामने खड़ा करती है – क्या आज हमारी बेटियां सचमुच सुरक्षित हैं? क्या हरियाणा जैसा राज्य, जो लड़कियों की शिक्षा और खेल के क्षेत्र में अपनी उपलब्धियों के लिए जाना जाता है, क्या वहां हमारी बेटियों को एक सुरक्षित माहौल मिल पा रहा है? मनीषा का केस सिर्फ एक परिवार की लड़ाई नहीं रह गया है, बल्कि यह पूरे समाज की जिम्मेदारी का आईना बन गया है। अब यह देखना बाकी है कि सीबीआई जांच से आखिर सच सामने आता है या यह मामला भी बाकी कई अनसुलझे केसों की तरह फाइलों में ही कहीं दबकर रह जाएगा। यह घटना समाज के लिए एक चेतावनी है।



