राजिम में आयोजित कुंभ कल्प में संत समागम के दौरान राम चरित मानस की चौपाई ‘मुद मंगलमय संत समाजू, जो जग जंगम तीरथराजू’ की प्रासंगिकता को उपस्थित जनसमूह ने साक्षात्कार किया। जब त्रिवेणी संगम के तट पर बने विशाल मंच पर देशभर के संतों का आगमन हुआ। यूं भी संत और तीरथ एक दूसरे के पर्याय हैं। संत के बिना किसी तीरथ का और तीरथ के बिना किसी संत का महत्व नहीं रह जाता। राजिम अपने आप में एक तीर्थ के सामान स्थापित है। जिसकी धरा से निकलने वाली श्रद्धा और आस्था के लिए यहां आने वाले हर श्रद्धालुओं को साकारात्मक गतिज और ऊर्जा से भर देती है। साथ ही त्रिवेणी संगम की स्वर लहरियों के साथ जब भगवान श्री राजीव लोचन की आरती में बजने वाली घंटे-घड़ियाल की आवाज के साथ ताल में ताल मिलकर मग्न होकर नाचती है, उस अलौकिक भावना के भाव का साक्षातकार बहुत ही कम लोगों को ही मिल पाता है, जिसकी जितनी श्रद्धा भाव होते हैं, उसे उसी भाव से उस अलौकिक आनंद की अनुभूति होती है।
संगम तट पर बने मंच पर कुंभ कल्प में आयोजित संत समागम में भाग लेने आए देशभर के साधु-संत महात्माओं के स्वस्ति वाचन से पूरा कुंभ धर्म और आस्था की त्रिवेणी में डूबकी लगाने से नहीं रोक सके। संतों ने राजिम कुंभ में पहुंचकर भगवान श्रीराजीव लोचन एवं राजिम के पवित्र भूमि के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हुए आभार माना कि उन्हें छत्तीसगढ़ की इस पवित्र भूमि में भगवान श्री राजीव लोचन के दर्शन लाभ का सौभाग्य मिला। साथ ही राजिम की भूमि अपने संत पुत्रों को अपने सानिध्य में पाकर स्वयं को आनंदित होने से नहीं रोक पाई। उस क्षण में वेद मंत्रों से निकलने वाली आनंदित तरंगों का अहसास उपस्थित संपूर्ण जन समुदाय ने महसूस किया। तभी जन समुदाय ने उद्घोष करते हुए अपने आनंद के साक्षात्कार का जय-जयकार किया। इस क्षण के साक्षी उपस्थित विशाल जनसमूह।
राजिम कुंभ के संत समागम परिसर में श्रध्दा भक्ति और आध्यात्म का हो रहा मिलन
राजिम कुंभ कल्प के संत समागम परिसर में बने डोम में प्रतिदिन धार्मिक प्रवचन, सत्संग, भजन, कीर्तन, साधु-संत और महंतो के द्वारा किया जा रहा है। संतो के सानिध्य में राजिम नगरी पावन तीर्थ बना है जहां अनेक ज्ञानी महात्माओं के दर्शन और उनके आशीर्वाद मिल रहे हैं। राजिम मेले में आएं श्रध्दालु उनके अमृत वचनो का लाभ ले रहें है। पंडित अश्वनी शर्मा ने भक्त और भगवान के बीच मधुर संबंध का वर्णन करते हुए कहा की बिना श्रध्दा और भक्ति के भव से पार नही हों सकते।
आध्यात्म से ही मानव मन को आत्मिक आनंद की प्राप्ति हो सकती है। निष्काम कर्म करते हुए उच्च नैतिक गुणों से युक्त होकर हृद्य में शुध्द भाव रखकर मानवता के कल्याण के कार्य करते रहना चाहिए। दीन-दुखी गरीब असहाय और जरूरतमंद की सेवा करने से भगवान प्रसन्न होते है। परमात्मा किसी भी रूप में हमारे सम्मुख आ जाते है। जरूरत है, तो अंर्तमन से उनके दिव्य रूप को महसूस करने की। संसारिक मोह माया में जब तक लिप्त रहेंगेे तब तक कही भी शुकुन नहीं मिलेगा। अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए आत्मा को परमात्मा से जोड़ कर रखना चाहिए और मन वचन और कर्म से सात्विक रहकर सभी से मधुर व्यवहार कर सहयोग समन्वय और सामंजस्य स्थापित करना चाहिए मन के कुविचार को त्याग कर जो सच्चे मन से भगवान को याद करतें है उनकी वे प्रार्थना अवश्य सुनते है। सिर्फ कुछ मांगने के लिए ही ईश्वर की अराधना नही करनी चाहिए। अलौकिक आनंद को प्राप्त करने के लिए हर पल ईश्वर का सुमीरन करते रहना चाहिए तभी भक्त और भगवान के बीच रिश्ते मजबूत होतें है।
राजिम कुंभ में संत समागम परिसर में सहज योग की दी जा रही जानकारी तनाव मुक्त जीवन के लिए सहजयोग आज की सबसे बडी आवश्यकता
राजिम कुंभ कल्प में संत समागम परिसर में सहज योग के अभ्यास की प्रदर्शनी लगी है जहां तनाव शारीरिक, मानसिक भावनात्मक व्याधियो की मुक्ति के लिए एवं पारिवारिक जीवन में सुख शांति एवं सामंजस्य स्थापित करने के लिए सहजयोग करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। बताया गया कि सहजयोग करने के लिए कुछ भी छोड़ने की आवश्यकता नहीं है। आत्म साक्षात्कार के द्वारा ही हम जीवन की विविध चुनौतियो को पार कर सकते है। इसके लिए ध्यान करना अति आवश्यक है।
छत्तीसगढ़ में सहजयोग ध्यान के केन्द्र रायपुर, बिलासपुर, भिलाई, धमतरी, जगदलपुर, राजिम और भी अन्य स्थान पर है। राजिम कुंभ में 8 मार्च महाशिवरात्रि तक सहजयोग केंद्र में आकर इसका लाभ मेलार्थी ले सकते है।
प्रदर्शनी में बताया गया कि माताजी श्री निर्मलादेवी की मानवता को एक महान देन हैं। सहजयोग यह आत्मज्ञान को प्राप्त करने की अत्यंत सरल एवं सहज ध्यान-पध्दति है। यह परमात्मा की सर्वव्यापक शक्ति से जुड़ने का एकमात्र सरल एवं सिध्द मार्ग है। अधिकतर लोग जानते हैं कि परमात्मा का निवास हमारे अंदर है, परन्तु बहुत कम लोगों ने इसका अनुभव किया है। परमात्मा की सर्वव्यापक शक्ति का प्रतिबिम्ब कुण्डलिनी के रूप में हर व्यक्ति के मेरूदंड (रीढ़ की हड़डी) के निचले छोर पर स्थित पवित्र त्रिकोणाकार अस्थि में सुप्तावस्था में विद्यमान है, इस ईश्वरीय शक्ति के जागृत होने पर मानव को सुंदर एवं सृजनात्मक व्यक्तित्व, उत्तम स्वास्थ, तथा परमात्मा द्वारा पथ-प्रर्दशन प्राप्त हो जाता है, और परिणामतः मानव तनाव रहित जीवन, निःस्वार्थ प्रेम एवं आनंद की स्थिति में आ जाता है।
सहजयोग से हम स्वयं के आंतरिक तंत्र को जान सकते है और आंतरिक तंत्र को समझकर सकारात्मक परिवर्तन ला सकते है। सर्वागीण विकास एवं संतुलित जीवनयापन भ्रष्टाचार, दुराचार एवं अनैतिकता रहित समाज के निर्माण के लिये आध्यात्मिक जीवन के परम लक्ष्य की प्राप्ति के लिये सहज योग आज के आधुनिक जीवन सैली में बहुत आवश्यक है। इससे तनाव रहित जीवन तथा तनाव से उत्पन्न होने वाले रागों से मुक्ति मिलती है। दुर्व्यसनों से स्वतः छुटकारा आनंदमय, शांतिपूर्ण जीवन की प्राप्ति चित्ता की एकाग्रता, स्मरणशक्ति की प्रबलता, सृजन शक्ति का विकास आत्मविश्वास में वृध्दि एवं स्व-निर्णय लेने की क्षमता का विकास सर्वसामान्य गृहस्थ जीवन बिताते हुये गहन आध्यात्मिक अवस्था की प्राप्ति होती है। हम आप सभी को इस अद्वितीय ध्यान-योग पध्दति को पाने एवं अनुभव करने के लिए सादर आमंत्रित करते हैं।