International

तेजी से घट रहे हैं न्यूजीलैंड के ग्लेशियर, बर्फ पिघलने से बदल रहा पर्यावरण

50 / 100

न्यूजीलैंड में तेजी से पिघल रही हैं ग्लेशियर, 24 साल में 30% बर्फ हुई गायब

न्यूजीलैंड दुनिया में उन देशों में तीसरे स्थान पर है, जहां ग्लेशियरों से सबसे ज्यादा बर्फ खत्म हो रही है। बीते 24 सालों में लगभग 30% बर्फ पिघल चुकी है, और बची हुई बर्फ भी तेजी से गायब हो रही है। एक हालिया वैश्विक अध्ययन के मुताबिक, यह समस्या आने वाले समय में और गंभीर हो सकती है।

गायब हो चुके हैं सैकड़ों ग्लेशियर

न्यूजीलैंड की पहाड़ियों से अब तक लगभग 300 ग्लेशियर पूरी तरह से खत्म हो चुके हैं। तापमान बढ़ने से बर्फ का पिघलना जारी है, जिसका असर जलवायु, पानी के स्रोतों, नदियों, पारिस्थितिकी तंत्र और इंसानों की आजीविका पर पड़ रहा है।

ग्लेशियरों की निगरानी क्यों जरूरी?

न्यूजीलैंड में 1977 से ही ग्लेशियरों पर नजर रखी जा रही है। हर साल वैज्ञानिकों की एक टीम गर्मियों के अंत में हवाई सर्वेक्षण करती है ताकि यह पता लगाया जा सके कि सर्दियों में गिरी हुई बर्फ में से कितनी बची है। ग्लेशियरों के आकार को बनाए रखने के लिए जरूरी है कि सर्दियों में जितनी बर्फ गिरती है, उतनी ही गर्मियों में बची भी रहे। लेकिन हाल के सर्वे बताते हैं कि गर्मियों में बर्फ पिघलने की दर बहुत ज्यादा हो गई है, जिससे ग्लेशियर सिकुड़ते जा रहे हैं। कुछ बेहद गर्म वर्षों में सर्दियों की पूरी बर्फ ही पिघल गई और नीचे की प्राचीन बर्फ कई मीटर तक पतली हो चुकी है। यह कुछ वैसे ही है जैसे किसी बैंक खाते में खर्चा लगातार बढ़ता रहे और आमदनी कम हो—आखिरकार एक दिन अकाउंट खाली हो जाता है।

ग्लेशियरों के पिघलने से क्या होगा नुकसान?

न्यूजीलैंड में लगभग 3,000 ग्लेशियर हैं, जो करीब 794 वर्ग किलोमीटर में फैले हैं। यह क्षेत्र ऑकलैंड के शहरी क्षेत्र का लगभग 75% है। हालांकि, इनमें से अधिकतर छोटे ग्लेशियर हैं, और ज्यादातर बर्फ कुछ बड़े ग्लेशियरों में केंद्रित है, जो Aoraki Mt Cook के पास स्थित हैं। भले ही सभी ग्लेशियर पिघल जाएं, लेकिन समुद्र के स्तर पर इनका ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। हालांकि, इसके कई और गंभीर परिणाम होंगे—

  1. पर्यावरणीय प्रभाव
    • बर्फ और ग्लेशियर आसपास के इलाकों को ठंडा रखते हैं, लेकिन इनके पिघलने से धरती ज्यादा गर्म होगी
    • नई गिरी बर्फ का 90% तक सूरज की रोशनी वापस अंतरिक्ष में लौट जाता है, लेकिन जब बर्फ घटने लगती है तो धरती सूरज की गर्मी ज्यादा सोखती है और तापमान और बढ़ता है।
    • यही कारण है कि हिमालय, आर्कटिक और अंटार्कटिका जैसे ठंडे इलाके बाकी दुनिया से ज्यादा तेजी से गर्म हो रहे हैं
  2. भूगर्भीय खतरे
    • जब ग्लेशियर पीछे हटते हैं, तो उनके आसपास की चट्टानें कमजोर हो जाती हैं, जिससे भूस्खलन का खतरा बढ़ता है।
    • बर्फ के पिघलने से झीलें बनती हैं, जो बिना किसी चेतावनी के अचानक फूट सकती हैं, जिससे बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है।
  3. जैव विविधता पर असर
    • बर्फ की मोटी चादर कई छोटे कीड़ों और पौधों को ठंड से सुरक्षा देती है
    • ग्लेशियरों से बहने वाला ठंडा पानी नदी और झरनों को ठंडा रखता है, जिससे ठंडे पानी में रहने वाली मछलियों को सहारा मिलता है।
    • ग्लेशियरों के पिघलने से बनने वाली महीन धूल खेती के लिए जरूरी पोषक तत्व देती है और हवा में कार्बन डाइऑक्साइड को संतुलित रखने में मदद करती है।
  4. आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभाव
    • न्यूजीलैंड में ग्लेशियर पर्यटन का एक बड़ा हिस्सा हैं—हर साल हजारों लोग ग्लेशियरों को देखने, स्कीइंग और एडवेंचर स्पोर्ट्स के लिए यहां आते हैं।
    • दक्षिणी आल्प्स के ग्लेशियर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हैं और कई क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाएं इन्हीं पर निर्भर हैं।
    • अगर ग्लेशियर इसी रफ्तार से पिघलते रहे, तो कुछ दशक बाद लोग इन्हें सिर्फ तस्वीरों और कहानियों में ही देख सकेंगे

ग्लेशियरों को बचाने के लिए क्या किया जा सकता है?

ग्लेशियरों के पिघलने की वजह सीधी है—ग्लोबल वॉर्मिंग। इस समस्या को रोकने के लिए हमें ऊर्जा उत्पादन में बदलाव लाना होगा और जीवाश्म ईंधन (फॉसिल फ्यूल) पर निर्भरता कम करनी होगी। यही वजह है कि संयुक्त राष्ट्र ने साल 2025 को ‘अंतरराष्ट्रीय ग्लेशियर संरक्षण वर्ष’ घोषित किया है और 21 मार्च को ‘विश्व ग्लेशियर दिवस’ के रूप में मनाने का फैसला किया है। अगर हमने अभी कदम नहीं उठाए, तो भविष्य में हमें ग्लेशियरों को सिर्फ कहानियों, पेंटिंग्स और पुरानी तस्वीरों में ही देखना पड़ेगा।

Show More

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button