क्यों बढ़ा विवाद? बंगाल में प्रमाणपत्रों को लेकर राजनीतिक टकराव तेज

बंगाल में प्रमाणपत्र विवाद: राजनीतिक टकराव हुआ और तेज, जानिए पूरा मामला- सुवेंदु अधिकारी ने तृणमूल सरकार पर लगाए गंभीर आरोपपश्चिम बंगाल में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने तृणमूल सरकार पर बड़ा आरोप लगाया है कि वह एससी, एसटी और ओबीसी प्रमाणपत्रों के लिए जल्दबाजी में कैंप लगा रही है। अधिकारी का कहना है कि ये प्रमाणपत्र उन लोगों को दिए जा रहे हैं जिन्हें वे “बिना दस्तावेज वाले घुसपैठिए और फर्जी दावेदार” बताते हैं। उन्होंने मुर्शिदाबाद के कांडी ब्लॉक विकास अधिकारी का मेमो भी साझा किया है, जिसमें 8 से 12 दिसंबर तक पंचायत कार्यालयों में कैंप लगाने का जिक्र है। अधिकारी ने चुनाव आयोग से 24 जून के बाद जारी प्रमाणपत्रों की कड़ी जांच की मांग की है। चुनाव आयोग की जांच से बढ़ी राजनीतिक गर्माहट, विपक्ष ने जताई चिंतासुवेंदु अधिकारी का आरोप है कि तृणमूल सरकार इसलिए जल्दी-जल्दी कैंप लगा रही है क्योंकि चुनाव आयोग की स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन प्रक्रिया उनके मतदाता घोटाले को उजागर कर सकती है। अधिकारी के मुताबिक कई ऐसे वोटर हैं जिनके नाम 2002 की असली मतदाता सूची से मेल नहीं खाते और वे ड्राफ्ट रोल से बाहर हो सकते हैं। ऐसे में सरकार फर्जी दावेदारों को प्रमाणपत्र दिलाकर जरूरी दस्तावेजों से जोड़ने की कोशिश कर रही है, जिससे लोकतंत्र को नुकसान पहुंच सकता है।
असली समुदायों के अधिकारों पर खतरा, फर्जी दावेदारों से बढ़ेगी परेशानीसुवेंदु अधिकारी का यह भी कहना है कि इस प्रक्रिया से असली एससी, एसटी और ओबीसी समुदाय के लोगों को नुकसान होगा। फर्जी दावेदार बड़ी संख्या में लाभ लेने पहुंचेंगे, जिससे असली हकदारों का हिस्सा कम हो जाएगा। अधिकारी के अनुसार यह खासकर उन परिवारों के लिए मुश्किलें बढ़ाएगा जो पीढ़ियों से अपनी पहचान और समुदाय के आधार पर मिलने वाली सुविधाओं पर निर्भर हैं। उनका मानना है कि इससे वंचित समुदायों के अधिकारों पर हमला होगा। चुनाव आयोग से प्रमाणपत्रों की सख्त जांच की मांगबीजेपी नेता ने चुनाव आयोग से अपील की है कि हर प्रमाणपत्र की गहराई से जांच हो। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि प्रमाणपत्र पाने वाला व्यक्ति सच में केंद्र की सूची में दर्ज एससी, एसटी या ओबीसी समुदाय से संबंधित हो। अधिकारी ने आरोप लगाया कि पश्चिम बंगाल सरकार कई बार ऐसे ओबीसी प्रमाणपत्र जारी करती है जिन्हें बाद में कोर्ट रद्द कर देता है। उनका कहना है कि चुनाव आयोग की यह प्रक्रिया मतदाता सूची को साफ करने और लोकतंत्र को मजबूत करने में मदद करेगी।



