“द सीड ऑफ द सेक्रेड फिग” का भारत में 24 जनवरी को प्रीमियर

“द सीड ऑफ द सेक्रेड फिग”: ईरानी फिल्मकार मोहम्मद रसूलोफ़ की चर्चित फिल्म “द सीड ऑफ द सेक्रेड फिग”, जो ऑस्कर की बेस्ट इंटरनेशनल फीचर कैटेगरी में जर्मनी की आधिकारिक एंट्री है, 24 जनवरी को भारतीय सिनेमाघरों में रिलीज़ होने जा रही है। यह फिल्म फ़ारसी भाषा में होगी और इसके साथ अंग्रेज़ी सबटाइटल्स भी उपलब्ध होंगे। भारत में इस फिल्म का वितरण इम्पैक्ट फिल्म्स के ज़रिए किया जाएगा। इम्पैक्ट फिल्म्स पहले भी कई अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराही गई फिल्मों जैसे “पोर्ट्रेट ऑफ अ लेडी ऑन फायर”, “पैरासाइट”, “ए हीरो”, “द व्हेल”, “एवरीथिंग एवरीवेयर ऑल एट वन्स”, और “मॉन्स्टर“ को भारतीय दर्शकों तक पहुंचा चुका है। “द सीड ऑफ द सेक्रेड फिग“ की कहानी तेहरान में उस वक्त की है, जब एक युवा महिला की दुखद मौत के बाद पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हो रहे थे। यह फिल्म समाज में चल रहे उथल-पुथल के बीच परिवार, सत्ता और विरोध के जटिल रिश्तों को गहराई से दिखाती है। फिल्म का मुख्य किरदार इमान, जो रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर्ट में जज है, अपने जीवन के एक नैतिक और व्यक्तिगत संकट का सामना करता है। इमान की सफलता का जश्न एक भयावह कहानी में बदल जाता है, जिसमें डर, धोखा और संघर्ष जैसे पहलुओं को पेश किया गया है।
यह फिल्म रन वे पिक्चर्स और पैरेलल45 के सहयोग से बनाई गई है और इसे एक सिनेमाई उत्कृष्ट कृति के रूप में देखा जा रहा है, जो व्यक्तिगत कहानियों के ज़रिए सेंसरशिप और दमन को चुनौती देती है। “द सीड ऑफ द सेक्रेड फिग“, जिसे अंतरराष्ट्रीय फिल्म श्रेणी में ऑस्कर नामांकन का मजबूत दावेदार माना जा रहा है, ने कांस फिल्म फेस्टिवल 2024 में स्पेशल जूरी प्राइज जीता था और इसे 82वें गोल्डन ग्लोब अवार्ड्स में बेस्ट मोशन पिक्चर (नॉन-इंग्लिश लैंग्वेज) के लिए नामांकित किया गया है। मोहम्मद रसूलोफ़, जो आयतुल्लाह खुमैनी शासन के मुखर आलोचक हैं, मई से जर्मनी में निर्वासन में रह रहे हैं। उन्होंने अपने जन्मस्थान को गुप्त तरीके से छोड़ा था, क्योंकि फिल्म के लिए उन्हें आठ साल की जेल का सामना करना पड़ सकता था। रसूलोफ़, जिन्हें उनकी “देर इज़ नो ईविल” के लिए गोल्डन बियर अवार्ड मिला था, ने इस फिल्म में महसा अमिनी की मौत के बाद हुए वास्तविक विरोध प्रदर्शनों के फुटेज का उपयोग किया है। महसा अमिनी एक 22 वर्षीय छात्रा थीं, जिनकी मौत पुलिस हिरासत में हुई थी, जब उन्हें सार्वजनिक रूप से हिजाब न पहनने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। रसूलोफ़ ने इस फिल्म को “कलाकारों की दृढ़ता और हमारी साझा मानवता के अंधेरे कोनों को रोशन करने की कला की शक्ति” कहा है।इम्पैक्ट फिल्म्स के संस्थापक और सीईओ अश्विनी शर्मा ने कहा, “हमें गर्व है कि हम इस साहसी फिल्म को प्रस्तुत कर रहे हैं। यह सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक बगावत का प्रतीक और निर्वासन में काम कर रहे एक निर्देशक की बहादुरी की कहानी है, जिसने दुनिया के सामने इसे लाने का बड़ा जोखिम उठाया।”