दंगा प्रभावितों को कैद जैसी हालत में रखा जा रहा है: बंगाल बीजेपी का आरोप

बीजेपी नेता सुवेंदु अधिकारी का आरोप: दंगों से प्रभावित लोगों को राहत कैंप में नजरबंद कर रही है बंगाल सरकार बीजेपी नेता और विधानसभा में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने शनिवार को पश्चिम बंगाल सरकार पर गंभीर आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि सरकार ने दंगा प्रभावित लोगों के लिए बनाए गए राहत कैंपों को “नजरबंदी केंद्र” में बदल दिया है। उनका दावा है कि प्रशासन इन कैंपों में रह रहे लोगों से मिलने या उनकी स्थिति जानने की किसी को भी इजाजत नहीं दे रहा। एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए, सुवेंदु अधिकारी ने लिखा कि खासकर महिलाएं और बच्चे अपनी इज्जत बचाने के लिए धुलियन और शमशेरगंज से भागकर भागीरथी नदी के पार बैष्णवनगर इलाके के परलालपुर हाई स्कूल और आसपास के अन्य स्कूलों में शरण लेने को मजबूर हुए हैं। लेकिन अधिकारी का कहना है कि सरकार बेहद अमानवीय रवैया दिखा रही है। राहत कैंपों में मीडिया और सामाजिक संगठनों को लोगों से मिलने नहीं दिया जा रहा है। जो खाना दिया जा रहा है, वो भी बहुत ही घटिया क्वालिटी का है – चावल और सब्ज़ी भी ठीक से नहीं पकी होती। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि जो एनजीओ इन लोगों की मदद के लिए खाना भेज रहे हैं, वो खाना पुलिस ने जब्त करके गोदामों में रखवा दिया है।
सुवेंदु ने यह भी कहा कि जो एनजीओ मदद के लिए आगे आए हैं, उन्हें झूठे मामलों में फंसाया जा रहा है और उन पर कार्रवाई की जा रही है। बीजेपी विधायक ने इसे पूरी तरह से क्रूर और गैर-इंसानी हरकत बताया, जो लोकतंत्र के खिलाफ है। उन्होंने दंगों में बेघर हुए लोगों की इज्जत और अधिकारों को बहाल करने की मांग की है। साथ ही, यह भी कहा कि अगर हालात ऐसे ही रहे, तो वह अदालत का रुख करेंगे। बहरमपुर के पूर्व कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने भी राज्य सरकार पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि दंगों में बेघर हुए लोगों को उनके घरों में वापस लौटने की कोई कोशिश नहीं हो रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस मीडिया और पीड़ितों के रिश्तेदारों को राहत कैंपों में जाकर मिलने की अनुमति नहीं दे रही है। वहीं, तृणमूल कांग्रेस के महासचिव कुणाल घोष ने पलटवार करते हुए कहा कि बीजेपी जैसी विपक्षी पार्टियां राज्य को अस्थिर करना चाहती हैं और नहीं चाहतीं कि हालात सामान्य हों। गौरतलब है कि 11-12 अप्रैल को वक्फ एक्ट में बदलाव के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान धुलियन और शमशेरगंज से करीब 400 लोग, जिनमें ज़्यादातर महिलाएं और बच्चे थे, अपने घर छोड़कर मालदा के बैष्णवनगर भागे थे। इन दंगों में तीन लोगों की जान चली गई थी और सैकड़ों लोग बेघर हो गए थे। ये झड़पें मुस्लिम बहुल इलाकों में हुई थीं।