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बांग्लादेश में फिर लौट रही है जमात-ए-इस्लामी: आठ साल बाद मिली चुनावी मान्यता

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बांग्लादेश: जमात-ए-इस्लामी की वापसी – क्या है पूरा मामला?-बांग्लादेश की राजनीति में एक बड़ा उलटफेर देखने को मिला है। जमात-ए-इस्लामी, जिसे कट्टरपंथी माना जाता है, को चुनाव आयोग ने फिर से मान्यता दे दी है! चुनाव आयोग के वरिष्ठ सचिव अख्तर अहमद ने मंगलवार को एक आधिकारिक नोटिस जारी कर यह घोषणा की। अब यह पार्टी आने वाले चुनावों में हिस्सा ले पाएगी।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला: एक नया मोड़-दरअसल, 1 जून को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि जमात-ए-इस्लामी का रजिस्ट्रेशन बहाल किया जाए। यह फैसला तब आया जब अंतरिम सरकार ने आठ महीने पहले ही इस पार्टी पर लगी पाबंदी हटा दी थी। इस फैसले से पार्टी को चुनाव लड़ने का रास्ता साफ हो गया है और वो फिर से राजनीतिक सरगर्मी में शामिल हो सकती है।

 1971 का विरोध और 2013 का बैन-2013 में, सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार जमात-ए-इस्लामी पर बैन लगा दिया था। कोर्ट का कहना था कि 1971 में पाकिस्तान से आजादी की लड़ाई के दौरान इस पार्टी ने बांग्लादेश की आजादी का विरोध किया था, इसलिए यह राष्ट्रीय चुनाव में हिस्सा लेने के लायक नहीं है। इसके बाद 2018 में, चुनाव आयोग ने इसे आधिकारिक तौर पर अपनी सूची से हटा दिया था।

 शेख हसीना सरकार का कड़ा कदम-अगस्त 2024 में, शेख हसीना की सरकार ने सत्ता से हटने से कुछ दिन पहले जमात पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया था। यह फैसला उस समय लिया गया जब देश में ‘स्टूडेंट्स अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन’ (SAD) नामक छात्र संगठन के नेतृत्व में एक बड़ा जन आंदोलन चल रहा था, जिसे जमात-ए-इस्लामी का समर्थन प्राप्त था।

 कानूनी लड़ाई और राजनीतिक वापसी-हसीना सरकार के जाने के बाद, जमात ने 2013 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले की समीक्षा की मांग की। उन्होंने कोर्ट से अपील की कि पार्टी को फिर से राजनीतिक रूप से सक्रिय होने दिया जाए। अब, कोर्ट के ताज़ा फैसले के बाद, पार्टी की राजनीतिक वापसी लगभग तय मानी जा रही है।

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