छत्तीसगढ़ की मंददीप खोल गुफा: रहस्य, रोमांच और शिव मंदिर तक का कठिन सफर

छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी धार्मिक गुफा: मंडीप खोल अमित पांडेय – छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ इलाके में एक ऐसी गुफा है जो अपनी खास मान्यताओं और परंपराओं की वजह से बेहद मशहूर है। इस गुफा का नाम है मंडीप खोल, जिसे छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी धार्मिक गुफा माना जाता है। हर साल अक्षय तृतीया के बाद आने वाले सोमवार को ही ये गुफा खोली जाती है। इस गुफा में भगवान शिव का प्राचीन मंदिर है, जो साल में बस एक दिन के लिए खुलता है। इस खास मौके पर शिवजी के दर्शन के लिए लोग एक नहीं बल्कि 16 बार एक नदी को पार करके यहाँ तक पहुँचते हैं। जैसे ही सोमवार को मंदिर के दरवाज़े खुले, तो हज़ारों लोग मुश्किल रास्ता पार करते हुए दर्शन के लिए यहाँ पहुँचे। इस साल ये गुफा 5 मई को श्रद्धालुओं के लिए खोली जा रही है। यह गुफा खैरागढ़ से लगभग 80 किलोमीटर दूर, मैकल पर्वतमाला और घने जंगलों के बीच बसी है। हर साल अक्षय तृतीया के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार को इसे खोला जाता है। उस दिन यहाँ एक दिन का मेला लगता है जिसमें दूर-दूर से लोग भगवान शिव के इस खास और प्राकृतिक रूप के दर्शन करने आते हैं। यही वजह है कि इस जगह को ‘मंडीपखोल’ कहा जाने लगा — जिसमें ‘मंडी’ मतलब मेला और ‘खोल’ यानी गुफा। यह गुफा दो मंज़िला है और इसका बनना पृथ्वी के बहुत पुराने समय – प्री-कैम्ब्रियन युग से जुड़ा है। सालों से ये परंपरा चली आ रही है कि गुफा साल में बस एक बार खोली जाती है। इसके पीछे कई धार्मिक मान्यताएं और कहानियां हैं। लेकिन अगर वैज्ञानिक नजरिए से देखें, तो यह परंपरा प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखने का एक तरीका भी है। पुराने समय में शायद लोगों ने इस गुफा की खास जैव विविधता को समझ लिया था, इसलिए उन्होंने तय किया कि इसे साल में बस एक बार ही खोला जाए, ताकि इसका प्राकृतिक संतुलन बना रहे।
क्या कहते हैं वैज्ञानिक मंडीप खोल को लेकर? नेशनल केव रिसर्च एंड प्रोटेक्शन ऑर्गनाइजेशन और इटालियन केव रिसर्च ग्रुप ने मिलकर इस गुफा का गहराई से अध्ययन किया है। रिसर्च टीम के डॉ. जयंत विश्वास बताते हैं कि यहां कुछ बेहद दुर्लभ जीव-जंतु मिलते हैं – जैसे पूंछ वाले चमगादड़, ब्लैंडफोर्ड रॉक अगामा (एक तरह की छिपकली), अलग-अलग किस्म की मकड़ियां, पिल बग और कई किस्म के मेंढक। ये सब जीव सूरज की रोशनी के बिना गुफा के अंदर एक अलग तरह की खाद्य श्रृंखला पर टिके रहते हैं। रिसर्च में यह भी पता चला कि जब बहुत ज़्यादा लोग एक साथ गुफा में आते हैं, तो वहां का तापमान बढ़ जाता है, जिससे ये जीव कुछ समय के लिए गुफा के अंदर या किसी और जगह चले जाते हैं। हालांकि बाद में वो लौट आते हैं, लेकिन इसका असर गुफा के इकोसिस्टम पर पड़ता है। साथ ही गुफा की पानी की धारा और वहां होने वाली पारंपरिक गतिविधियों के बीच संतुलन बनाए रखना भी ज़रूरी है। गर्मियों में आसपास के गांवों में केसरिया टोमेंटोसा नाम के एक फल से मछली पकड़ने की पारंपरिक विधि अपनाई जाती है, जिससे पानी में मिलाने पर मछलियां बेहोश हो जाती हैं। यह तरीका गुफा के जलीय इकोसिस्टम के लिए खतरनाक हो सकता है, जिस पर पर्यावरण विशेषज्ञ भी चिंता जता चुके हैं। यही वजह है कि हमारे पूर्वजों ने शायद सोचा कि इस गुफा को साल में सिर्फ एक बार खोला जाए, ताकि न सिर्फ इंसानों को फायदा हो, बल्कि यहां रहने वाले जीव-जंतु भी सुरक्षित रह सकें।
5 मई को खुलेगी गुफा, लगेगा वार्षिक मेला इस साल 5 मई को मंडीप खोल गुफा खोली जाएगी। श्वेतगंगा नाम की एक जलधारा, जिसे पायथन गुफा भी कहते हैं, से निकलकर श्रद्धालु 17 बार पानी पार करते हुए मंडीप खोल पहुंचेंगे। वहां प्राकृतिक वातावरण के बीच भगवान भोलेनाथ की पूजा करेंगे। परंपरा के अनुसार सुबह सबसे पहले ठाकुरटोला के जमींदार परिवार द्वारा पूजा की जाती है, उसके बाद दिनभर श्रद्धालु आते रहते हैं। खैरागढ़ के कलेक्टर इंद्रजीत चंद्रवाल ने बताया कि इस बार भी हज़ारों श्रद्धालुओं के आने की संभावना है। इसी को ध्यान में रखते हुए प्रशासन ने पूरी तैयारी कर ली है। पुलिस और प्रशासन को भी सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम करने के निर्देश दिए गए हैं, ताकि आयोजन शांतिपूर्ण और व्यवस्थित ढंग से हो सके।