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India Caste Census: मोदी सरकार लाएगी जातिगत जनगणना, जानें कब होंगे आंकड़े जारी

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भारत जाति जनगणना 2025: अब जनगणना में होगी जातियों की भी गिनती, मोदी सरकार ने लिया ऐतिहासिक फैसला क्या आप जानते हैं कि आज़ादी के बाद से अब तक देश में एक बार भी जातियों की गिनती नहीं हुई थी? लेकिन अब केंद्र सरकार ने एक बड़ा और ऐतिहासिक कदम उठाया है। आने वाली जनगणना में अब जातिगत आंकड़े भी शामिल किए जाएंगे। ये फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की राजनीतिक मामलों की समिति (CCPA) की बैठक में लिया गया। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि “अभी तक कई राज्यों ने अपने-अपने स्तर पर जाति सर्वे किए, लेकिन वो पूरी तरह से पारदर्शी और वैज्ञानिक नहीं थे, जिससे समाज में भ्रम फैल गया। इसीलिए अब जातियों की गिनती को आधिकारिक जनगणना का हिस्सा बनाया जा रहा है ताकि यह काम निष्पक्ष और साफ तरीके से हो।”

जाति जनगणना कब होगी? सरकार की योजना है कि जनगणना की शुरुआत सितंबर 2025 से की जाए। पूरी प्रक्रिया दो साल चलेगी, और इसके अंतिम आंकड़े 2026 के अंत या 2027 की शुरुआत में सामने आ सकते हैं।

इतिहास क्या कहता है? क्या 74 साल बाद हो रही है जातिगत जनगणना? ब्रिटिश सरकार ने भारत में 1881 से जातियों की गिनती शुरू की थी और 1931 तक हर जाति की जानकारी दर्ज होती रही। 1941 में भी जातिगत जनगणना हुई थी, लेकिन उसका डेटा कभी जारी नहीं किया गया। आजादी के बाद 1951 से अब तक सिर्फ अनुसूचित जातियों (SC) और जनजातियों (ST) की गिनती होती रही है, क्योंकि इन्हें संविधान के तहत आरक्षण देना जरूरी था। नेहरू, पटेल और अंबेडकर जैसे नेताओं ने उस वक्त यह तय किया था कि जाति के आधार पर गिनती करने से समाज में फूट पड़ सकती है।

राज्यों में क्या रहा अनुभव और क्या रही राजनीति? बिहार देश का पहला राज्य बना जिसने 2022 में सभी जातियों की गिनती करवाई और इसकी रिपोर्ट 2 अक्टूबर 2023 को जारी की गई। इसमें सामने आया कि ओबीसी और ईबीसी की कुल आबादी 63% से ज्यादा है। कर्नाटक और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों ने भी हाल ही में जाति सर्वेक्षण करवाए। सरकार का कहना है कि कई राजनीतिक दलों ने जाति जनगणना का इस्तेमाल अपने राजनीतिक फायदे के लिए किया। ब्रिटिश काल में जाति जनगणना (1871–1931)

शुरुआत: पहली जातिगत जनगणना 1871 में ब्रिटिश सरकार ने करवाई थी।

मकसद: समाज की संरचना और प्रशासन को समझना था ताकि शासन चलाना आसान हो। 1931 की जनगणना: यह आखिरी बार था जब भारत में जातियों, उपजातियों, सामाजिक ढांचे और आर्थिक स्थिति की पूरी जानकारी दर्ज की गई थी। इस जनगणना की रिपोर्ट “General Report of 1931 Census” नाम से J.H. Hutton ने तैयार की थी, जो उस वक्त जनगणना आयुक्त थे।

आजादी के बाद क्या हुआ? 1951 के बाद से भारत सरकार ने जातिगत जनगणना को बंद कर दिया। सिर्फ SC और ST की गिनती होती रही, क्योंकि उनके लिए आरक्षण जरूरी था। ओबीसी और अन्य जातियों की गिनती नहीं की गई।

2011 का Socio Economic and Caste Census (SECC) 2011 में भारत सरकार ने एक बड़ा सर्वे कराया जिसका नाम था – Socio-Economic and Caste Census (SECC)। यह सर्वे ग्रामीण इलाकों में ग्रामीण विकास मंत्रालय और शहरी इलाकों में शहरी मंत्रालय द्वारा करवाया गया। यह आधिकारिक जनगणना नहीं थी, लेकिन पहली बार जातिगत जानकारी इकठ्ठा की गई।

SECC-2011 से जुड़े अहम तथ्य इसमें करीब 46 लाख जातियों के नाम सामने आए, लेकिन इनमें कई डुप्लिकेट, गलत वर्तनी, और अस्पष्ट जानकारी थी। इसी वजह से सरकार ने इस डेटा को कभी सार्वजनिक नहीं किया। 2015 तक इसे जारी नहीं किया गया और बाद में कहा गया कि इसमें सुधार करना मुश्किल है, इसलिए इसे नहीं छापा जाएगा।

राज्य स्तर पर जाति गणना की स्थिति क्या है? बिहार सरकार ने 2022-23 में जाति आधारित गणना कराई, और 2 अक्टूबर 2023 को इसकी रिपोर्ट जारी कर दी। इस रिपोर्ट के आने के बाद पूरे देश में जाति जनगणना को लेकर चर्चा और तेज हो गई।
कई विपक्षी पार्टियां जैसे आरजेडी, समाजवादी पार्टी, डीएमके और कांग्रेस, लंबे समय से जातिगत जनगणना की मांग कर रही हैं, ताकि आरक्षण और सरकारी योजनाएं ज़्यादा प्रभावी बन सकें।

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