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क्या विपक्ष की एकता में दरार पड़ चुकी है? कास्ट सेंसस से लेकर ऑपरेशन सिन्दूर तक की जमीनी हकीकत

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 लोकसभा के बाद: क्या विपक्षी एकता टूट रही है?-यह सवाल आजकल हर किसी के ज़हन में है। जून के लोकसभा चुनावों के बाद से भारतीय राजनीति में एक नया मोड़ आया है। बीजेपी की जीत के बाद से विपक्षी गठबंधन INDIA की एकता पर सवाल उठ रहे हैं। क्या यह गठबंधन बीजेपी को चुनौती दे पाएगा या फिर टूट जाएगा?

 संसद में एकता, बाहर बिखराव?-संसद के अंदर विपक्षी दल कई मुद्दों पर साथ दिखते हैं, लेकिन बाहर उनकी एकता कमज़ोर होती जा रही है। आपसी मतभेद और प्रतिस्पर्धा कई बार इतनी बढ़ जाती है कि सरकार के खिलाफ एकजुट मोर्चा बनाने में मुश्किल आती है। एक साझा रणनीति बनाना अब भी एक बड़ी चुनौती है।

 कांग्रेस की चुनौतियाँ और सहयोगियों की दूरी-कांग्रेस का लोकसभा में प्रदर्शन अच्छा रहा, लेकिन हरियाणा और महाराष्ट्र में हार ने उसके नेतृत्व पर सवाल खड़े कर दिए हैं। इससे सहयोगी दल भी कांग्रेस से दूरी बनाने लगे हैं और अपनी रणनीति बनाने में जुट गए हैं। इसका असर पूरे विपक्षी मोर्चे पर साफ दिख रहा है।

 वक्फ कानून और हिंदुत्व एजेंडा: एकता का संकेत?-वक्फ संपत्ति प्रबंधन पर कानून के दौरान विपक्षी दलों की एक साथ बैठक ने एकता का संकेत दिया। लेकिन बीजेपी ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि वह अपने हिंदुत्व एजेंडे से पीछे नहीं हटेगी।

 जातिगत जनगणना और मोदी सरकार की चाल-कांग्रेस ने जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाया था, लेकिन सरकार ने अगली जनगणना में जातिगत आंकड़े जोड़ने का ऐलान कर दिया। इससे कांग्रेस का दबाव तो कम हुआ, लेकिन विपक्ष के इस मुख्य मुद्दे की धार भी कमजोर हो गई।

‘ऑपरेशन सिन्दूर’ और विपक्ष में दरार-‘ऑपरेशन सिन्दूर’ के बाद सरकार ने विपक्ष के भीतर असहमति पैदा करने में कामयाबी पाई। शशि थरूर जैसे नेताओं को प्रतिनिधिमंडल में शामिल करके सरकार ने विपक्ष में खलबली मचा दी। संसद के विशेष सत्र की मांग को नजरअंदाज करते हुए सरकार ने 47 दिन पहले ही मानसून सत्र का ऐलान कर दिया, जिससे विपक्ष की योजनाएँ बिगड़ गईं।

 आगामी चुनाव: I.N.D.I.A. की परीक्षा-बिहार और पूर्वोत्तर के आगामी विधानसभा चुनाव I.N.D.I.A. गठबंधन के लिए एक बड़ी परीक्षा होंगे। सीट बंटवारे और आपसी तालमेल ही इस गठबंधन की असली ताकत या कमजोरी साबित होंगे।

दोहरी चुनौती-I.N.D.I.A. गठबंधन को न केवल बीजेपी के मजबूत रणनीतिक हमलों का सामना करना है, बल्कि अपनी आंतरिक कमजोरियों से भी निपटना है। आने वाले चुनाव ही तय करेंगे कि विपक्ष सरकार को कड़ी चुनौती दे पाएगा या फिर आपसी खींचतान उसकी सबसे बड़ी कमजोरी बन जाएगी।

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