प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात के लिए तैयार स्टालिन, डीलिमिटेशन पर कई दलों के नेताओं संग करेंगे चर्चा

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की मांग की, जनसंख्या के आधार पर सीटों के पुनर्वितरण पर जताई चिंता तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की मांग की है। वह विभिन्न राजनीतिक दलों के सांसदों के साथ मिलकर संविधान में सीटों के पुनर्वितरण (Delimitation) पर बनी जॉइंट एक्शन कमेटी (JAC) की पहली बैठक में लिए गए फैसलों पर चर्चा करना चाहते हैं। स्टालिन ने इस मांग को लेकर प्रधानमंत्री को पत्र लिखा और इसकी एक कॉपी अपने X (पूर्व में ट्विटर) अकाउंट पर भी साझा की।
सीटों के पुनर्वितरण पर उठी समान विचारधारा की आवाजें
स्टालिन ने अपने पत्र में कहा कि 22 मार्च को हुई बैठक में उठी आवाजें किसी एक राजनीतिक दल तक सीमित नहीं थीं, बल्कि यह अलग-अलग राज्यों और क्षेत्रों के नागरिकों की चिंताओं को दर्शाती हैं, जो लोकतंत्र में उचित प्रतिनिधित्व चाहते हैं। उन्होंने लिखा, “यह मुद्दा हमारे राज्यों और नागरिकों के लिए बहुत अहम है, इसलिए मैं जॉइंट एक्शन कमेटी की ओर से एक ज्ञापन सौंपने के लिए आपसे मुलाकात करना चाहता हूं।” स्टालिन प्रधानमंत्री मोदी से मिलकर बैठक में पारित प्रस्ताव की कॉपी सौंपने की योजना बना रहे हैं।
बैठक में शामिल हुए कई राज्यों के मुख्यमंत्री और नेता
इस बैठक में तमिलनाडु के अलावा केरल, तेलंगाना और पंजाब के मुख्यमंत्री – पिनाराई विजयन, रेवंत रेड्डी और भगवंत मान, कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डी. के. शिवकुमार और विभिन्न दलों के अन्य नेता शामिल हुए थे। बैठक में केंद्र सरकार से मांग की गई कि 2026 के बाद लोकसभा सीटों की संख्या और राज्यों के लिए आवंटित सीटों में किसी भी बदलाव को अगले 25 सालों तक टाल दिया जाए। यह बैठक एक तरह से बीजेपी के खिलाफ विपक्षी दलों की एकजुटता का प्रदर्शन भी थी। लगभग सभी मुख्यमंत्रियों ने केंद्र सरकार पर पारदर्शिता न रखने और इस मुद्दे पर चुप्पी साधने का आरोप लगाया। स्टालिन ने इस गंभीर मुद्दे को उठाया, जिस पर बीजेपी 2026 के चुनावों से पहले चुप्पी साधे हुए है। स्टालिन इसे तमिलनाडु और केंद्र सरकार के बीच के संघर्ष के रूप में चुनावी मुद्दा बनाना चाहते हैं।
पारित प्रस्ताव में क्या कहा गया?
बैठक में पारित प्रस्ताव में कहा गया कि लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए किसी भी प्रकार की सीटों के पुनर्वितरण प्रक्रिया को पारदर्शी तरीके से लागू किया जाना चाहिए। इसमें राजनीतिक दलों, राज्य सरकारों और अन्य हितधारकों की राय को शामिल किया जाना जरूरी है। इसके अलावा, संविधान के 42वें, 84वें और 87वें संशोधनों का जिक्र करते हुए प्रस्ताव में कहा गया कि जो राज्य जनसंख्या नियंत्रण को प्रभावी ढंग से लागू कर रहे हैं, उनके हितों की रक्षा की जानी चाहिए। “राष्ट्रीय स्तर पर जनसंख्या स्थिरीकरण का लक्ष्य अभी तक हासिल नहीं हुआ है। ऐसे में 1971 की जनगणना के आधार पर तय की गई संसदीय सीटों को अगले 25 वर्षों तक स्थिर रखा जाना चाहिए,” प्रस्ताव में यह मांग की गई। अब देखना होगा कि प्रधानमंत्री मोदी इस बैठक के अनुरोध को स्वीकार करते हैं या नहीं, क्योंकि यह मुद्दा अगले लोकसभा चुनावों में बड़ा राजनीतिक विषय बन सकता है।