‘हिंदू बोर्ड में मुस्लिम हो सकते हैं तो वक्फ में क्यों नहीं?’ – सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछे 5 सवाल

वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 (सुप्रीम कोर्ट) सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना ने वक्फ संशोधन कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कुछ तीखे सवाल उठाए। उन्होंने पूछा, “क्या हिंदू समुदाय के धार्मिक ट्रस्ट में मुसलमान या गैर हिंदू को जगह दी जाएगी? क्या अब से आप मुसलमानों को हिंदू बंदोबस्ती बोर्ड का हिस्सा बनने की अनुमति देंगे?” आइए जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ कानून पर क्या-क्या टिप्पणियां की हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि वह वक्फ कानून से जुड़ी कुछ धाराओं पर अंतरिम आदेश जारी करने पर विचार कर रही है। हालांकि, केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील के लिए और समय मांगा है। इस मामले की अगली सुनवाई आज, 17 अप्रैल को दोपहर 2 बजे होगी। सुप्रीम कोर्ट की प्रमुख टिप्पणियां CJI बोले- ‘आप इतिहास को फिर से नहीं लिख सकते’ सीजेआई संजीव खन्ना ने कहा कि सरकार वक्फ कानून में किए गए संशोधनों के जरिए इतिहास को फिर से नहीं लिख सकती। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा, “जब किसी सार्वजनिक ट्रस्ट को 100 या 200 साल पहले वक्फ घोषित किया गया था, और आप अचानक कहते हैं कि इसे वक्फ बोर्ड द्वारा अधिग्रहित किया जा रहा है, तो आपको समझना होगा कि आप इतिहास को फिर से नहीं लिख सकते।” क्या मुसलमान हिंदू बोर्ड का हिस्सा होंगे? वक्फ कानून में संशोधन के तहत गैर-मुसलमानों को केंद्रीय वक्फ परिषद और वक्फ बोर्ड में शामिल करने का प्रावधान है। सुनवाई के दौरान, सीजेआई खन्ना ने तुषार मेहता से पूछा, “क्या आप यह कह रहे हैं कि अब से आप मुसलमानों को हिंदू बंदोबस्ती बोर्ड का हिस्सा बनने की अनुमति देंगे? खुलकर कहिए!”
इस पर तुषार मेहता ने कहा कि यह कानून संसद में विस्तृत चर्चा के बाद पारित किया गया था और इसे एक संयुक्त संसदीय समिति ने जांचा था। उन्होंने और दलीलें पेश करने के लिए समय मांगा। CJI ने कहा- ‘जब न्याय के लिए पीठ पर बैठते हैं तो हमारा कोई धर्म नहीं होता’ सीजेआई खन्ना ने कहा कि अगर इस दलील को स्वीकार कर लिया गया, तो यह पीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती। उन्होंने कहा, “जब हम यहां (बेंच) बैठते हैं, तो हम अपना धर्म खो देते हैं। हमारे लिए दोनों पक्ष एक जैसे हैं।” ‘दस्तावेज पेश करना असंभव हो सकता है’ सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि कुछ धार्मिक संपत्तियों के लिए बिक्री जैसे दस्तावेज पेश करना असंभव हो सकता है। कोर्ट ने कहा, “अंग्रेजों के आने से पहले हमारे पास कोई पंजीकरण या संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम नहीं था। कई मस्जिदें 14वीं या 15वीं सदी की होंगी। ऐसे में उनके दस्तावेज कैसे पेश किए जाएंगे?” इस पर तुषार मेहता ने कहा, “उन्हें इसे पंजीकृत करने से किसने रोका?” कलेक्टर की शक्तियों पर भी उठाए सवाल सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने संशोधित वक्फ अधिनियम के तहत सरकारी अधिकारी/कलेक्टर को दी गई शक्तियों पर भी सवाल उठाए। कोर्ट ने पूछा, “क्या यह उचित है? जिस क्षण कलेक्टर इस पर निर्णय लेना शुरू करता है, यह वक्फ नहीं रह जाता। क्या यह उचित है?”
यह सुनवाई वक्फ कानून के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। अगर आपके पास इस विषय पर और सवाल हैं, तो बेझिझक पूछें!